प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगभग चार वर्ष पहले सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का आह्वान किया था। उसी आह्वान के तहत आज से कठोर कदम उठाया जा रहा है। मालूम हो कि आज से लगभग 19 वस्तुओं के निर्माण, भंडारण, आयात, वितरण, बिक्री और उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग जाएगा। इन प्रतिबंधित वस्तुओं में पेय पदार्थ पीने वाला पाइप, पेय पदार्थ को घोलने वाली प्लास्टिक की पाइप, इयर बड, कैंडी, गुब्बारे, प्लास्टिक के बर्तन जैसे चम्मच, प्लेट और पैकेजिंग फिल्म समेत साज सज्जा में इस्तेमाल होने वाला थर्मोकोल आदि शामिल हैं।
वैसे प्रतिबंध तो स्वयं नागरिक को ही लगाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिसकी वजह से अब सरकार को इस संबंध में कड़ा रुख अपनाते हुए प्रतिबंध लगाना पड़ा है। वैसे भी इस दशक के आरंभ में ही कोरोना वायरस के प्राणघाती हमले ने समूचे विश्व को सोचने पर विवश कर दिया कि अब प्रकृति के साथ दुश्मनी करके नहीं, बल्कि दोस्ती के साथ ही अपने भविष्य को संकट रहित बनाया जा सकता है। आज भारत के लगभग प्रत्येक नगर के आसपास आपको कूड़े के बड़े बड़े ढेर देखने को मिल सकते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में तीन ऐसी जगहें हैं जहां इतना कूड़ा जमा है कि दूर से देखने पर वह किसी पहाड़ की तरह लगता है। ये कूड़े के पहाड़ हमारी वर्षों से चली आ रही कचरा निष्पादन के प्रति अनदेखी अथवा उदासीन रवैये का दुष्परिणाम है।
- चिंता नहीं चिंतन: आंकड़ों के हिसाब से बात करें तो भारत का प्लास्टिक उद्योग लगभग 40 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। इसमें 60 हजार से ज्यादा प्रसंस्करण इकाइयां शामिल हैं। जिनमें से लगभग 92 प्रतिशत एमएसएमई यानी लघु एवं मध्यम क्षेत्र में हैं। निश्चित है कि यह क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित होगा। वैसे यह चिंता की बात नहीं है, क्योंकि सरकार अपने लघु और मध्यम उद्योग को नुकसान नहीं होने देगी। इस पर चिंतन चल रहा है कि किस प्रकार रोजगार संकट से बचा जा सके। एक उपाय यह भी है कि प्लास्टिक निर्माण उद्योगों को जूट उत्पादन और थैलियों के निर्माण कार्य में लगा दिया जाए। इस हेतु उन्हें इंसेंटिव भी प्रदान किया जा सकता है। इस प्रकार रोजगार समस्या से निदान भी मिल सकेगा।
- खतरों से अनजान क्यों: आज समूचे देश की जनसंख्या में से ऐसे बहुत कम ही लोग होंगे जिनको प्लास्टिक कचरे के खतरनाक दुष्परिणामों की समझ होगी। यहां तक कि अधिकतर लोग यह अनुमान तक नहीं लगा पाते हैं कि इसका मानव जीवन पर कितना भयावह दुष्प्रभाव पड़ता होगा। वास्तव में, यहां पर जागरूकता का कार्य करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है। निश्चित ही प्लास्टिक जनित वस्तुएं मानव जीवन में गहन रूप से जुड़ चुकी हैं, लेकिन मनुष्य इनके घातक दुष्परिणामों को नजरअंदाज करता रहा है, क्योंकि मानव जीवन में प्लास्टिक का जुड़ाव खिलौने से लेकर विविध प्रकार की अनगिनत वस्तुओं में रहा है। यहां तक कि गिफ्ट भी यदि किसी को दिया जाता है तो उसमें भी प्लास्टिक का जुड़ाव बखूबी रहता है। क्या हमने कभी सोचा है कि जो उपहार हम अच्छे रंग बिरंगे, आकर्षक पालीथीन में पैक करा कर भेंट करते हैं, वह उपहार प्राप्तकर्ता को क्षणिक खुश तो अवश्य करता है, लेकिन हमें यह भी सोचना चाहिए कि यह भविष्य के लिए कितना बड़ा खतरा उत्पन्न करता है। शायद हम सब यह नहीं सोचते हैं या फिर उसे नजरअंदाज कर जाते हैं।
- 1950 से अब तक दुनिया में लगभग आठ अरब 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा: हीं अगर दैनिक कार्य हेतु एक बार उपयोग में आने वाली पालीथीन की बात करें तो वहां भी हमारा नजरिया कुछ ऐसा ही होता है, क्योंकि हम सोचते हैं कि केवल एक बार ही तो उपयोग करना है। लेकिन एक बार ही रोजाना जब इस प्रकार से बहुत सी चीजों को हम जीवन में उपयोग करते हैं तो इसी के साथ आने वाली पीढ़ी के लिए कचरे का पहाड़ बनाते जाते हैं। इसी का परिणाम है कि आज प्लास्टिक का साम्राज्य सभी जगह व्याप्त हो चुका है। इसका दुष्परिणाम व्यक्ति के जीवन को सीधे प्रभावित कर रहा है। आज निरंतर प्लास्टिक के उत्पादन और उसके उपयोग का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1950 से अब तक दुनिया में लगभग आठ अरब 30 करोड़ टन से भी अधिक का प्लास्टिक उत्पादन हो चुका है। यहां तक अनुमान है कि लगभग तीन करोड़ टन प्लास्टिक कचरा हर साल सीधे समुद्रों में गिराया जा रहा है। वहीं एक लाख करोड़ से भी अधिक प्लास्टिक बैग हर वर्ष उपयोग हो रहे हैं। यहां प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या मानव समाज प्लास्टिक उपयोग करते समय इसका ध्यान रखता है कि इस प्लास्टिक को नष्ट होने में कितना समय लगता है? शायद यह कभी नहीं सोचता होगा।
- उपभोक्तावाद और दिखावे की संस्कृति ने बदला परिदृश्य: आज प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर प्लास्टिक के इस कदर बढ़े उपयोग का सबसे बड़ा कारण क्या है। कहा जा सकता है कि इसका महत्वपूर्ण कारण उपभोक्तावाद का बढ़ता स्तर ही है। लेकिन दूसरा कारण प्लास्टिक की उत्पादन लागत का कम होना भी है। कांच की बोतल प्लास्टिक की बोतल से महंगी पड़ जाती है, साथ ही उसकी ढुलाई की प्रक्रिया में भी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है। जबकि प्लास्टिक को आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। यह हल्का भी होता है। इसी कारण प्लास्टिक सरलता से मानव जीवन में पैठ बनाए हुए है। अगर व्यक्ति कांच या स्टील की वस्तुओं का उपयोग करता है तो उनका जीवन काल एक से दो वर्ष तक होता है, लेकिन प्लास्टिक को मात्र एक बार उपयोग करने के बाद उसे फेक दिया जाता है। इसलिए कचरे की मात्र तेजी से बढ़ती जाती है। लिहाजा, सरकार अपने स्तर से लोगों से लंबे समय से अपील कर रही है कि कम से कम सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम करें और उसके बेहतर विकल्पों को अपनाने पर अधिक ध्यान दें।
सरकार ने भविष्य के खतरों का अनुमान लगाते हुए अब प्लास्टिक पर कड़ा कदम उठाया है जिसकी सराहना की जानी चाहिए। साथ ही अब विदेश से प्लास्टिक के आयात पर भी रोक लगाई जाएगी। सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद प्लास्टिक के ही ऐसे बैग बनाए जाएं जो दोबारा उपयोग करने लायक हों, यानी उन्हें रिसाइकल भी किया जा सके। इसके अतिरिक्त प्लास्टिक उत्पादन करने वाले उद्योगों पर प्रतिबंध लगाकर उनको जूट की थैलियां तथा अन्य वस्तुओं के निर्माण पर जोर देना होगा, जो पर्यावरण अनुकूल हो। अब कोरोना जैसी महामारी और प्रकृति के नित्य प्रति संदेशों से सीख लेकर प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति उदासीनता का त्याग करना बहुत ही जरूरी हो गया है।
मनुष्य ने सदैव ही प्रकृति को अपना गुलाम बनाना चाहा है। मनुष्य ने बस्तियां बसाने के लिए जंगल काटे, खेती के लिए जंगलों में आग लगाई, प्राकृतिक संसाधनों का स्वामी बनने के लिए खनन किया, स्वामित्व के आधार पर पानी का भरपूर दोहन भी किया, जनसंख्या वृद्धि करते हुए तमाम प्रकार का प्रदूषण फैलाया तथा अपनी आवश्यकता के लिए उद्योग लगाया जिसमें से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ को नदियों में प्रवाहित करके नदी जीव विविधता को नष्ट किया और कई प्रकार के कचरों से पृथ्वी को कूड़ा गृह बना डाला। इस प्रकार अपनी इन करतूतों से प्रकृति के कार्यो में मनुष्य ने सदैव व्यवधान पैदा किया। ऐसा करते-करते मनुष्य को यह भरोसा हो गया था कि उसने प्रकृति को पूरी तरह पराजित कर दिया है।
इन सभी प्रकृति विरोधी कार्यों से हम आर्थिक संवृद्धि तो दे सकते हैं, लेकिन धारणीय विकास से मनुष्य मोहताज ही रहेगा और इसकी भरपाई मनुष्य को समय-समय पर अपने विनाश से करना होगा। अब भी समय है। हमें सोचना होगा कि क्या पृथ्वी का कोई अन्य विकल्प है जिसे हम सब अपनी महात्वाकांक्षा की वजह से नष्ट करते जा रहे हैं। अगर नहीं, तो फिर हम कब सुधरेंगे? यही वक्त है प्रतिज्ञा करने का कि आज से ही हम सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग करना बंद कर देंगे।