जब से दुनियां का जन्म हुआ है। तब से यही प्रथा चली आ रही है (Vinod Rana) कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं है। और यह बिल्कुल सत्य है। बिना गुरु के ज्ञान नहीं, बिना गुरु के लोग भड़क जाते हैं। जो रास्ते पर चल तो पड़ते हैं लेकिन बिना गुरु के बीच में ही छोड़ जाते हैं और मुश्किलों का सामना नहीं कर पाते। उसका कारण यही है कि अच्छा गुरु ना मिलने के कारण लोग अपने रास्ते से भटक जाते हैं और कुछ छोड़ देते हैं और कुछ गलत रास्ता अपना लेते हैं।
भारत देश को एकलव्य जैसे महान धनुर्धर ने यह साबित किया था कि अगर आपके अंदर दृढ़ संकल्प हो और कुछ करने की इच्छा हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। ऐसे ही आधुनिक युग में एक गरीब परिवार में जन्मे एक छोटे से इंसान की है। जिसने आज यह सब कुछ साबित भी किया है (Vinod Rana) कि अगर दृढ़ संकल्प हो तो कुछ भी मुमकिन नहीं है। वो भी इस समय यहां पर डिजिटल मीडिया हो। हां हम उस इंसान की बात कर रहे हैं जिसने असंभव को संभव किया उसका नाम है महावीर विनोद राणा।
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महावीर विनोद राणा का जन्म गांव सपनावत जिला हापुर उत्तर प्रदेश में हुआ। महावीर, विनोद राणा के पिताजी का नाम है और उन्ही के नाम पर महावीर विनोद राणा पड़ा। महावीर विनोद राणा एक छोटे से परिवार में जन्मे जिनका पालन पोषण बड़े ही कठिनाइयों से हुआ। (Vinod Rana) जिनके दो बड़े भाई और एक बड़ी बहन है। किसी ने भी महावीर विनोद राणा के हुनर को नहीं समझा और उनको ताने मारते रहे कि यह कुछ नहीं कर सकता। पिताजी इसके पीछे क्यों इस तरह पागल है?
विनोद राणा एक सीधा- साधा लड़का था जिसका लक्ष्य अपने पिता का नाम रोशन और देश का नाम रोशन करना था। गांव के लोग जो पिताजी को ताने मारते थे। वह साबित करना चाहता था कि मैं वह करूंगा जो आज तक शायद किसी ने करा हो। महावीर विनोद राणा अपने पिताजी के साथ भी मजदूरी किया करता था। उसके पिता ही उसके मोटिवेट हीरो थे। उन्हीं के विचार और उन्हीं के दृढ़ संकल्प से विनोद राणा आगे बढ़ता रहा और बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का भी सामना करता रहा लेकिन किसी ने उसके हुनर को नहीं समझा।
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धीरे-धीरे एक के बाद एक सीढी चढ़ता गया। विनोद राणा ने डिजिटल के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय, वर्ल्ड चैंपियनशिप तक भारत को गोल्ड मेडल दिए। (Vinod Rana) आज विनोद राणा को भारत का दूसरा एकलव्य कहा जाता है। एकलव्य नाम जो यह सिखाता है कि दर्द संकल्प के आगे कुछ भी नहीं और विनोद राणा ने दृढ़ संकल्प से असंभव को संभव बना दिया और भारत का नाम विदेशों में रोशन किया।