नव वर्ष, विक्रम संवत-2081 पर डेर बाबा सरसांईनाथ (Sarsainath) में आयोजित वार्षिक मेला में सिरसा के विधायक, पूर्व गृहराज्यमंत्री, हलोपा सुप्रीमो गोपाल कांडा के अनुज एवं श्री बाबा तारा जी कुटिया के मुख्य सेवक गोबिंद कांडा ने परिवारजनों के साथ बाबा की समाधि पर जाकर शीश नवाया और चादर चढ़ाकर सभी की सुख शांति और समृद्धि के लिए मंगलकामना की। इसके बाद सभी ने डेरा मंहत बाबा सुंदराईनाथ से आशीर्वाद लिया।
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नवसंवत पर मंगलवार देर रात को श्री बाबा तारा जी कुटिया के मुख्य सेवक गोबिंद कांडा, परिवार के अन्य सदस्यों, सरिता कांडा, संगीता कांडा, धैर्य कांंडा, लाभांशी,राजू सैनी, लक्ष्मण गुज्जर, प्रेम कंदोई, संजीव शर्मा, मोहित जोशी, आनंद छावडा आदि डेरा बाबा सरसांईनाथ में पहुंचे। सबसे पहले उन्होंने बाबा सरसांईनाथ की समाधि पर चादर चढ़ाई और बाबा की प्रतिमा के समक्ष शीश नवाया। उन्होंने अन्य समाधिस्थल पर पूजा की और प्रसाद चढ़ाया।
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इसके बाद उन्होंने भगवान शिव, श्री हनुमान जी मंदिर में पूजन किया। इसके बाद कांडा परिवार के सदस्यों ने हिंगलाज माता मंदिर, सती दादी मंदिर में विधिवत पूजन कर शीश नवाया। इसके बाद में बाबा सरसांईनाथ (Sarsainath) की खंडाऊ, कमंडल का पूजन करते हुए धूने पर जाकर शीश नवाया। गोबिंद कांडा ने परिवारजनों के साथ डेरा के महंत सुुंदराईनाथ से आशीर्वाद लिया और धर्म को लेकर चर्चा की। महंत सुंदराईनाथ ने कांडा परिवार के हर सदस्य को आशीर्वाद प्रदान किया। इस मौके पर गोबिंद कांडा ने कहा कि सिरसा के लोग भाग्यशाली है जिन्होंने संत महात्माओं की भूमि सिरसा में जन्म लिया है।
उन्होंने कहा कि इस धरती पर कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सो सकता यहीं के लोग धार्मिक और सामाजिक है जो एक दूसरे की मदद के लिए हर समय तैयार रहते हैं। उन्होंने कहा कि विधायक गोपाल कांडा ने हरियाणा सरकार से अनुरोध किया था कि सिरसा में बनने वाले मेडिकल कालेज का नामकरण किया जाए और सरकार ने इसे स्वीकार करते हुए मेडिकल कालेज का नामकरण बाबा सरसांईनाथ के नाम पर किया। गौरतलब हो कि हरियाणा के एक छोर पर स्थित जिला सिरसा बाबा सरसांईनाथ के नाम पर बसा है। हर वर्ष हिंदू नव वर्ष के अवसर पर इस डेरे में बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा सरसांई नाथ जी के की समाधि पर शीश नवाने आते हैं। श्रद्धालु समाधि पर पर भगवा चादर चढ़ाते हैं। मान्यता है कि मुगल शहनशाह शाहजहां के बेटे दारा शिकोह को यहां पर जीवनदान मिला था। जिसके बाद मुगल बादशाह ने डेरे में भव्य गुंबद का निर्माण करवाया, जो आज भी ज्यों का त्यों हैं। मुगल सम्राट और ख्वाजा पीर ने बाबा जी का चमत्कार स्वीकार किया।