ग्रीन एनर्जी– भारत की जीएसटी काउंसिल ने 22 सितम्बर 2025 से बड़ा कदम उठाते हुए रिन्यूएबल एनर्जी उपकरणों पर टैक्स घटाकर 12% से 5% कर दिया। यह फैसला ऐसे समय आया है जब देश 2030 तक 500 गीगावॉट रिन्यूएबल कैपेसिटी का लक्ष्य हासिल करने की तैयारी में है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न सिर्फ प्रोजेक्ट कॉस्ट घटेगी बल्कि भारत की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री भी ग्लोबल स्तर पर और प्रतिस्पर्धी बनेगी।
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ग्रीन एनर्जी की बड़ी कंपनियों में शुमार अदाणी ग्रीन एनर्जी 30 गीगावाट से अधिक क्षमता और खावड़ा में दुनिया का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट विकसित कर रही है। अदाणी पावर ने कहा कि समूह ने वित्त वर्ष 2030 तक 21 बिलियन अमरीकी डालर के निवेश की योजना बनाई है ताकि रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता को वित्त वर्ष 2025 के 15 गीगावाट से बढ़ाकर 50 गीगावाट किया जा सके। रिन्यू पावर का पोर्टफोलियो 18.5 गीगावाट तक पहुँच चुका है और यह स्टोरेज व हाइब्रिड मॉडल्स पर आक्रामक है।
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टाटा पावर रिन्यूएबल्स की क्षमता लगभग 11 गीगावाट है और इसका विकास स्थिर है। जेएसडब्ल्यू एनर्जी भी करीब 11 गीगावाट के साथ औद्योगिक और हाइब्रिड प्रोजेक्ट्स में तेजी से आगे बढ़ रही है। वहीं एनटीपीसी रिन्यूएबल्स अपने मेगा-स्केल सरकारी प्रोजेक्ट्स के ज़रिए एक झटके में सैकड़ों मेगावॉट जोड़ने की क्षमता रखता है।
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अब सोलर पैनल, विंड टर्बाइन और बायोगैस प्लांट की लागत कम होगी। 100 करोड़ रुपये के सोलर प्रोजेक्ट पर जीएसटी में ही करीब 7 करोड़ रुपये की सीधी बचत होगी। इसका सीधा असर लेवलाइज्ड कॉस्ट ऑफ इलेक्ट्रिसिटी पर पड़ेगा और बिजली उत्पादन सस्ता होगा।टैक्स कटौती से घरेलू मॉड्यूल और टर्बाइन इंटरनेशनल मार्केट की तुलना में ज्यादा सस्ते पड़ेंगे। छोटे और मझोले उद्योगों के लिए पैनल असेंबली, वायरिंग और बायोगैस उपकरण का उत्पादन आसान होगा। विदेशी कंपनियों के लिए भी भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने का माहौल और अनुकूल होगा।
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इन्वेंट्री और लॉजिस्टिक्स की लागत घटने से सप्लाई चेन भी तेज़ होगी। प्रोडक्शन कॉस्ट घटने का असर सीधे तौर पर एडजस्टेड प्रेजेंट वैल्यू पर पड़ेगा। बैंकों के लिए ऐसे प्रोजेक्ट्स में रिस्क कम होगा, जिससे फाइनेंसिंग आसान होगी। इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन कंपनियों को बड़े प्रोजेक्ट्स को तय समय पर पूरा करने में सहूलियत मिलेगी।
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जून 2025 तक भारत 234 गीगावाट रिन्यूएबल कैपेसिटी हासिल कर चुका है। 2030 तक 500 गीगावाट का लक्ष्य हासिल करने के लिए हर साल औसतन 35-40 गीगावाट जोड़ना होगा। विशेषज्ञों का अनुमान है कि टैक्स कटौती के बाद 2026-27 से वार्षिक इंस्टॉलेशन ग्रोथ 20% तक बढ़ सकती है।
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उम्मीद है कि जीएसटी कटौती से प्रति मेगावॉट लागत 35-40 लाख रुपये तक घट सकती है और घरेलू मॉड्यूल और टर्बाइन निर्माताओं की क्षमता उपयोग दर बढ़ेगी, जिससे नई नौकरियों का सृजन होगा।सरकार का यह कदम केवल टैक्स घटाने तक सीमित नहीं है। यह भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने, प्रोजेक्ट कॉस्ट घटाने और 500 गीगावाट लक्ष्य को समय पर हासिल करने की दिशा में निर्णायक कदम है। आने वाले वर्षों में जैसे-जैसे उपकरण सस्ते होंगे और इंस्टॉलेशन बढ़ेगा, भारत की पहचान सिर्फ ग्रीन एनर्जी कंज़्यूमर के रूप में नहीं बल्कि ग्रीन एनर्जी प्रोड्यूसर और एक्सपोर्टर के रूप में भी और मज़बूत होगी।
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