सिरसा।(सतीश बंसल) पंजाबी व हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार सुखचैन सिंह भंडारी के सिरसा आगमन पर हरियाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन, सिरसा की ओर से एक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन युवक साहित्य सदन में किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में सुखचैन सिंह भंडारी ने शिरकत की। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि व कहानीकार सुरेश बरनवाल ने की तथा साहित्यकार दिलबाग सिंह विर्क ने विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थिति दर्ज करवाई। मंच संचालन साहित्यकार डा. शील कौशिक ने बखूबी किया, जबकि संस्था के प्रधान प्रो. रूप देवगुण ने सभी का आभार प्रकट किया। (Literary Seminar)
सर्वप्रथम प्रो. रूप देवगुण की कृति मेरी प्रारंभिक कविताओं का विमोचन किया गया और दिलबाग सिंह विर्क का साक्षात्कार हुआ, जिसमें उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा का खुलकर वर्णन किया। इसके पश्चात कविता व लघुकथा गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें राजकुमार निजात की दो पंक्तियां देखिए, गीत कब गाया गया, संवेदना का भाव कब पाया गया है, वेदना का। प्रो. रूप देवगुण की लघुकविता की चार पंक्तियां देखने योग्य है, दोनों रहते है बादलों के बीच, बादल नीचे से बना कर आते है, फिर उन पर है छा जाते। ठंडा सुहावना मौसम है वहां। डा. शील कौशिक की पंक्तियां दृष्टव्य है, कुछ न कह कर सब कहें, ऐसी भाषा मौन, जब दिल ही सब कुछ कहे, ऐसी भाषा मौन। प्रो. सुदेश कंबोज ने चिडिय़ा को संबोधित करते हुए कहा-चुप कर चिडिय़ा, चुप कर, चुप कर, ऐसे ना तू शोर मचा, सोते हुए को ना जगा। (Literary Seminar)
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जनकराज शर्मा ने हरियाणवी रागिनी सुनाई, जिसकी एक पंक्ति- कै मानस का माड़ा हो भाई, माड़ा वक्त बणा दे। डा. आरती बंसल की लघु कविता की पंक्तियां-काश दीवारों के सचमुच ही कान होते, वो सुन लेती मृत्यु की आहट। सुखचैन सिंह भंडारी ने सरल भाषा में व्यंग्यात्मक कविता सुनाई-ए जी, सुनती हो, सुनती हो या मायके के स्वेटर बुनती हो। सुरेश बरनवाल ने अजीब प्रजाति नामक लघु कथा सुनाई। मेजर शक्तिराज कौशिक ने अपनी कविता में अंगे्रजी भाषा का नहीं, अपनी भाषा का पक्ष लिया। महेंद्र सिंह नागी ने पंजाबी में दो कविताएं सुनाई। प्रो.हरभगवान चावला, दिलबाग सिंह विर्क तथा दीप सिंह ने भी अपना रचनाओं का पाठ किया। (Literary Seminar)