पंचकूला 10 जुलाई 2025: विश्वास फाउंडेशन द्वारा गुरुपूर्णिमा का पावन पर्व गुरुदेव श्री स्वामी विश्वास जी के आशीर्वाद से विश्वास मैडिटेशन सेंटर सेक्टर 9 पंचकूला में ध्यान व् सत्संग के साथ बड़े ही प्रेम भाव व् हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत देवियों व संगत के भजनों से हुई। उसके बाद गुरुदेव श्री जी की गुरुपूर्णिमा पर आधारित वीडियो प्ले की गयी। वो वीडियो लगभग पौने 2 घंटे तक चली। सारी संगत वीडियो को देखकर भाव विभोर हो गई , तत्पश्चात सभी ने गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद गुरु मेरा पार बृह्म गुरु भगवंत भजन पर आरती की। सैंकड़ों साधक साध्वियां ट्राईसिटी व अन्य आसपास के शहरो से गुरुपूर्णिमा मनाने के लिए सम्मिलित हुए।
उस रिकार्डेड वीडियो में गुरुदेव श्री जी ने फ़रमाया सद्गुरु-शिष्य के बीच पूर्णता की भावदशा, जहाँ सद्गुरु व शिष्य दोनों एक दूसरे में पूरी तरह उतर जाने को आतुर हैं। सौभाग्यशाली हैं वे जो सद्गुरु के समीप, उसके क़रीब होते हैं, परन्तु वे और भी ख़ुशनसीब होते हैं जो स्वयं को सद्गुरु में पूरी तरह खोकर उसमें एक हो जाते हैं। सद्गुरु व शिष्य के बीच प्रेम का गणित उलटा है, जहाँ एक और एक मिलकर दो नहीं होते, दो मिलकर एक हो जाते हैं। सद्गुरु व शिष्य के मिलन में गुरुपूर्णिमा उतरती है-दोनों के मिलन में विराट उतरता है।
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गुरुदेव श्री जी ने विश्वास मैडिटेशन की पावन गहराईयों में उतारते हुए फ़रमाया-“जीवन के किसी भी मोड़ पर अगर सद्गुरु मिल जाये तो प्राण उससे जोड़ लेना, उसमें स्वयं को पूरा-पूरा डुबो देना। अगर तुम स्वयं को पूरा उसमें खो दोगे तो एक दिन विराट में बहने लगोगे। अचानक तुम पाओगे-कोई तुम्हें ले चला उस पार विराट की गहराईयों में जहाँ एक नईं पुलक, नया संगीत, नया जीवन तुम्हारी प्रतीक्षा में बाँहें फैलाए खड़ा है। सद्गुरु की यही करुणा है। अपने शिष्य को अपनी तरह विराट में, सत्य के शिखरों में खड़ा करना ही उसकी एकमात्र पीड़ा है, दर्द है। उसमें विराट में उतरने की आकांक्षा-अभीप्सा सद्गुरु ही भरता है।”
गुरुदेव ने आगे कहा –” वह अपने शिष्य को मिटाता-मिटाता अपने स्वरूप में स्थित करता चला जाता है, वो उसकी झूठी प्रतिमा को तोड़कर उसे सत्य स्वरूप बना देता है, वो उसे एक नया व्यक्तित्व, एक नईं पहचान देता है। वो अपने शिष्य को उसकी शक्ति, उसकी संभावना के प्रति स्मृति लौटाने के लिए उसे करुणावश भीतर की ओर उन्मुख कर देता है। हर क़दम पर साथ रहते हुए वो अपने शिष्य का मार्गदर्शन करता है। जहाँ भी वो खड़ा है, वहीं सद्गुरु उपस्थित होकर उसकी शक्ति व सामथ्र्य के अनुसार उसे आगे बढ़ाता जाता है। वो हर पल इसी प्रयास में रहता है कि किसी तरह उसका शिष्य अपने स्वभाव से परिचित हो जाए और उसकी तरह अपने भीतर की गहराईयों में खोकर-डूबकर उस विराट को उपलब्ध हो जाए।”
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उनकी भक्ति व श्रद्धा में डूबे हुए गुरुदेव श्री जी ने पुनः फरमाया-“सद्गुरु की ये करुणा जब किनारे तोड़-तोड़ कर बहती है तो वो भटके जीवों को भगवान की ओर उन्मुख करने में लग जाता है, क्षुद्र जीवन में उतरे हुए जीवों को उस विराट स्त्रोत से जोड़ता चला जाता है, जहाँ आनन्द का, सुखों का भण्डार खुला है। जब-जब किसी के भीतर प्यास उठी है प्रभु प्रेम की, प्रभु के दीदार की -उस समय उस उठी हुई प्यास को किसी के दामन में थमाने के लिए, किसी के आगे अपना हृदय खोलने के लिए जो उसके भीतर के उठे हुए विरह को शांत कर सके, जो उसके भीतर की खोज-तलाश को पूर्ण कर सके, वो ऐसे किसी हितकारी की तलाश में लग जाता है। यूँ मानिए कि प्रभु ही उसको अपनी कृपा से ऐसे किसी जागे पुरुष के द्वार पर भेज देता है, जहाँ उसकी प्यास तृप्त हो सके। ऐसा तो केवल एकमात्र सद्गुरु ही हो सकता है।
गुरुपूर्णिमा के इस महोत्स्व पर कुछ साधकों ने पीताम्बर पोशाक भी धारण की। उसके बाद भजनों पर साधक साध्वियों ने नृत्य किया। भोजन भंडारे के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई। कार्यक्रम के अंत में आये सभी भक्तजनो को पैकेटबंद प्रसाद भी दिया गया।