लखनऊ: उत्तर प्रदेश के कानून विभाग में बंपर बर्खास्तगी हुई है. इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad HC) और लखनऊ खंडपीठ के करीब 900 सरकारी वकील (Government Advocate) बर्खास्त किए गए हैं. इससे संबंधित आदेश भी जारी हो गए हैं. इस फैसले से इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर लखनऊ तक हाहाकार मचा हुआ है. बर्खास्त हुए सरकारी वकीलों में अपर महाधिवक्ता से लेकर ब्रीफ होल्डर तक शामिल हैं. बड़े पैमाने पर हुई सरकारी वकीलों की बर्खास्तगी के बाद अब नये वकीलों को मौका मिलेगा.
सपा-बसपा सरकारों में हुई थी नियुक्तियां
सपा-बसपा सरकारों में यह नियुक्तियां की गई थीं, जिसमें भ्रष्टाचार की भी गुंजाइश थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास उत्तर प्रदेश में इस वक्त कानून मंत्रालय का भी प्रभार है. लिहाजा समीक्षा बैठक के बाद यह बड़ा फैसला लिया गया है. न्याय विभाग की तरफ से इन सभी 900 अधिवक्ताओं को बर्खास्त कर दिया गया है. आपको बता दें कि हर पांच साल पर सरकारी वकीलों को लेकर आदेश जारी होते हैं. कुछ सरकारी वकील हटाए जाते हैं, जिसके बाद नए लोगों को मौका मिलता है.
500 नए अधिवक्ताओं की हुई तैनाती
यूपी के 75 जिलों में और लखनऊ खंडपीठ और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 1850 अधिवक्ता शासकीय अधिवक्ता के तौर पर तैनात थे, जिसमें से 900 को हटाया गया है. जबकि उसके स्थान पर परफॉर्मेंस को देखते हुए 500 नए अधिवक्ताओं की भी तैनाती कर दी गई है. यानी साफ है कि अब सरकार के मुकदमे जो न्यायालय में चलते थे उसकी प्रभावी ढंग से पैरवी हो पाएगी. पहले यही बात समीक्षा बैठक में कही गई थी कि योग्य अधिवक्ताओं की नियुक्ति नहीं हुई. जिसकी वजह से सरकार के मुकदमे प्रभावित हो रहे हैं. इसके साथ ही अपराध और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पा रही है.अब इस फैसले के बाद सरकार के मुकदमों की प्रभावी पैरवी भी होगी और पुराने मुकदमों को निपटारा भी होगा.
कैसे होती है सरकारी वकीलों की नियुक्ति?
सरकारी वकील की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों में से कोई भी सरकार वकीलों की नियुक्ति कर सकती है. हालांकि, नियुक्ति कौन सरकार करेगी वो इस बात पर निर्भर होगी कि आप किस कोर्ट में वकालत करना चाहते हैं. हाई कोर्ट में सरकारी वकीलों की नियुक्ति, उस राज्य की सरकार और केंद्र सरकार द्वारा, उच्च न्यायालय से विचार और परामर्श करने के बाद किया जाता है. वहीं, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में वकीलों की नियुक्ति स्टेट गर्वमेंट द्वारा की जाती है. सरकार की इच्छानुसार ही सरकारी वकील के पद पर रहा जा सकता है. वहीं, सरकार बदलने पर नई सरकार उन्हें पद से हटा भी सकती है.