नई दिल्ली। 10 वर्ष दिहाड़ीदार के साथ नियमित सेवा करने वाले पेंशन के हकदार हैं या नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख साफ कर दिया है। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल के एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि दिहाड़ीदार के तौर पर 10 साल की सेवा के बाद छह साल से अधिक की नियमित सेवा करने वाला कर्मचारी भी पेंशन का हकदार है। शीर्ष अदालत ने 10 साल की दिहाड़ीदार सेवा को दो साल की नियमित सेवा मानते हुए कहा कि यदि कर्मचारी का नियमित सेवाकाल आठ वर्ष से अधिक बनता है, तो इसे न्यूनतम पेंशन के लिए 10 साल के बराबर मान लिया जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश सुंदर सिंह नामक मामले में पारित अपने फैसले की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया। प्रार्थी ने हिमाचल हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि पांच वर्ष की दिहाड़ीदार सेवा को एक वर्ष की नियमित सेवा के बराबर माना जाएगा। 10 वर्ष की दिहाड़ीदार सेवा को दो वर्ष की नियमित सेवा के बराबर माना जाएगा, ताकि कर्मी कुछ वर्ष की नियमित सेवा की कमी के कारण पेंशन के लाभ से वंचित न हों। ऐसा करते समय यदि कर्मचारी की नियमित सेवा आठ साल बनती है तो उसे 10 वर्ष मानते हुए पेंशन के लिए पात्र माना जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय की ओर से सुंदर सिंह बनाम राज्य सरकार मामले में पारित फैसले को लेकर प्रदेश हाई कोर्ट की एकल पीठ व खंडपीठों के फैसलों में विरोधाभास उत्पन्न हो गया था, जिस कारण मामले को तीन जजों की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखा था। मगर प्रार्थी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त करते हुए प्रार्थी बालो देवी को उसके पति की ओर से राज्य सरकार को दी गई सेवाओं की एवज में पेंशन देने का आदेश जारी किया। पेंशन का एरियर आठ सप्ताह के भीतर देना होगा।
मामले से जुड़े तथ्यों के अनुसार, प्रार्थी का पति जलशक्ति विभाग में चतुर्थ श्रेणी पर कार्यरत था। दिहाड़ीदार के तौर पर 10 साल की सेवा पूरी करने के बाद पहली जनवरी 2000 से नियमित किया गया था। छह साल दो माह की नियमित सेवा पूरी करने के बाद वह सेवानिवृत्त हो गया। छह साल दो माह की नियमित सेवा के चलते उसे विभाग की ओर से पेंशन देने से मना किया गया। इस कारण उसने हाई कोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल की और अंतत: उसे सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिली।