नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने राजद्रोह पर औपनिवेशिक युग के दंड कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा है।प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने 27 अप्रैल को केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा था कि वह पांच मई को मामले में अंतिम सुनवाई शुरू करेगी और स्थगन के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेगी।
अदालत के समक्ष दायर एक आवेदन में केंद्र ने कहा कि हलफनामे का मसौदा तैयार है और वह सक्षम प्राधिकारी से पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है।शीर्ष अदालत ने अपने पिछले आदेश में इस बात का संज्ञान लिया था कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) की वैधता के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से दलील संबंधी नेतृत्व करेंगे।
राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रविधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही जिसे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया।
आइपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया और पूर्व मेजर-जनरल एसजी वोंबटकेरे की याचिकाओं की पड़ताल के लिए सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता कानून का दुरुपयोग है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
पिछले साल जुलाई में याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने प्रविधान के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया था। प्रधान न्यायाधीश ने कहा था, ‘यह एक औपनिवेशिक कानून है। यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था। इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए किया था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है?’ अन्य याचिकाकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, मणिपुर से पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ से कन्हैया लाल शुक्ला शामिल हैं।