लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए कहा है कि दो पक्षों के बीच के सिविल विवाद को आपराधिक रूप देते हुए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने याची के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमे को निरस्त कर दिया।
यह आदेश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने अनिल कुमार तिवारी की ओर से दाखिल एक याचिका पर पारित किया। याची की ओर से अधिवक्ता चन्दन श्रीवास्तव की दलील थी कि याची की एक जमीन को बेचने का करार याची व मामले के शिकायतकर्ता के मध्य हुआ था। करार के मुताबिक शिकायतकर्ता को 20 लाख रुपये छह माह में देने थे लेकिन उसके द्वारा दिए गए दो चेक बाउंस हो गए। इसके बाद शिकायतकर्ता ने सिविल कोर्ट में दीवानी वाद भी दायर कर दिया। (सिविल विवाद)
इसके छह वर्षों बाद इस मामले में याची के विरुद्ध आइपीसी की धारा 420 समेत अन्य आरोपों में एफआईआर दर्ज करवा दी गई। पुलिस के आरोप पत्र दाखिल करने पर निचली अदालत ने याची को तलब कर लिया। दलील दी गई कि याची व शिकायतकर्ता के बीच एक दीवानी विवाद है जिसे आपराधिक रंग देकर याची को वर्तमान मुकदमे में फंसाया गया है। सर्वोच्च व उच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लेख करते हुए आरोप पत्र व निचली अदालत के संज्ञान आदेश को रद करने की मांग की गई।