पराशर जी के अनुसार राहु (Rahu) का डरावना चेहरा, हाथ में चमड़े की ढाल, सिंह पर सवार तलवार काले नीले रंग के समान है।
इसका समिधा दूर्वा जिसे दोब के नाम से भी जाना जाता है। काली उड़द की खिचड़ी या काले भुने तिल या सात दाने राहु के खाने योग्य हैं।
राहु की शांति के लिए 18000 राहु के मंत्र का जाप करना चाहिए। राहु के लिए काली उड़द की दाल की खिचड़ी काले कंबल वाले लोहे के सामान का दान करना चाहिए।
राहु (Rahu) छाया ग्रह है। यह उत्तरी कोण दक्षिण-पश्चिम दिशा का स्वामी है। राहु संध्या का स्वामी है।
राहु एक पिछड़ा ग्रह है जो पीछे से निकल रहा है। पृष्ठभूमि ग्रह कार्य हत्यारा है। लग्नेश के होने से सारा काम नष्ट नहीं होगा।
मेष, वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, धनु और मीन राशि में दशम भाव में रात में राहु बलवान होता है।
राहु आद्रा स्वाति सतभिषा नक्षत्रों की स्वामी है।
राहु की विंशोतारी स्थिति 18 वर्ष की है।
राहु वही फल देता है जब वह स्थित होता है या जिसके साथ वह स्थित होता है।
राहु शुभ में हो तो शुभ फल देता है और राहु अशुभ भाव में हो तो अशुभ फल देता है।
राहु 2,12,4,7,10वें भाव में समान है।
त्रिकोण और लग्न में शुभ रहेगा।
आठवें भाव में बहुत अशुभ और 3,6 और 11वें भाव में अशुभ।
राहु भी अपने साथ ग्रह का फल ढोता है।
राहु केंद्र के स्वामी के साथ हो तो अच्छा है,
त्रिकोण के स्वामी के साथ इतना शुभ और
यदि आप त्रिशदायश के साथ हैं, तो अच्छी या बुरी स्थितियाँ हैं।
राहु (Rahu) छाया ग्रह है। उनका अपना कोई भौतिक रूप नहीं है। तो, हम जिस ग्रह के साथ स्थित हैं, उसके अनुसार हम बनेंगे। यदि सूर्य सूर्य के साथ है तो सूर्य शनि के साथ है तो शनि। हम उसी भावेश का फल बढ़ाएंगे जिसके साथ हम बैठते हैं।
राहु कारक ग्रह के साथ हो तो कारक मारक, अष्टमेश या किसी अशुभ ग्रह के साथ हो तो बहुत ही अशुभ फल देते हैं।
राहु अशुभ हुए बिना समान है।
राहु पाप ग्रह है और जिस स्थान पर बैठता है वहां कुछ नुकसान करता है, लेकिन यदि वह शुभ ग्रहों के साथ या शुभ राशि या मित्र राशि में बैठता है, तो वह अच्छा फल देता है।
केवल कुण्डली ही नहीं जानती यह नवमांश दशा गोचर दशा महादशा अंतराशा है यह सब देखकर पता लगाया जा सकता है कि यह किस प्रकार का फल होगा ????
फिर भी कुछ योग बनते हैं। जैसे कपटपूर्ण योग, क्रोध योग, अष्ट लक्ष्मी योग, पिशाच बाधा योग, चांडाल योग, अंगारक योग, ग्रहण योग, सर्प श्राप योग, परिभाषा योग, अरिष्ट भंग योग, लग्न कारक योग, पल्लू योग और राहु शनि की युति ऐसी हैं। कुछ लोग।
1- पाखंड योग:-
कुंडली के चौथे भाव में शनि और बारहवें भाव में राहु (Rahu) हो तो कपटपूर्ण योग होता है। इस योग के कारण कथनी और करनी में अंतर होता है।
2- क्रोध योग:-
यदि सूर्य बुध या शुक्र के साथ विवाह में है, तो क्रोध योग है। जिससे जातक को लड़ाई-झगड़े, झगड़ों के कारण हानि और दुख भोगना पड़ता है।
3- अष्टलक्ष्मी योग:-
जब राहु षष्ठम में हो और गुरु केंद्र (दशम) में हो, तब अष्टलक्ष्मी योग होता है। इस योग के कारण व्यक्ति शांति के साथ सफल जीवन व्यतीत करता है।
4- पिशाच विघ्न योग:-
यदि राहु चन्द्रमा के साथ हो तो पिशाच विघ्न योग है। इस योग के कारण वैम्पायर को विघ्न की पीड़ा भोगनी पड़ती है और व्यक्ति घात लगाने के लिए बेताब रहता है।
5- मेष कर्क तुला मकर लग्न में चंद्र राहु (Rahu) की युति केंद्र में हो तो यह शुभ और फलदायी होता है। यदि चंद्र त्रिकोण (195-20) का स्वामी हो और चंद्र राहु की युति हो तो यह शुभ फल देता है।
अन्य भागों में चंद्र राहु के गठबंधन को भयंकर आरोपों से उत्पन्न मुकदमों का सामना करना पड़ता है और कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है।
6- चांडाल योग:-
राहु का गुरु से मिलन चांडाल योग बनाता है। इस योग का प्रभाव नास्तिक और पाखंडी बनाता है, लेकिन इसके अंगों को देखना बहुत जरूरी है।
1- योग की परिभाषा :-
19-04-2019 से लग्न या किसी स्थान में राहु हो तो योग की परिभाषा है। यदि इस राहु पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो वह शुभ फलदायी होता है।
8- अरिस्ता वांग योग:-
मेष, वृष, कर्क, यदि इन तीनों राशियों में से कोई भी लग्न में हो और राहु 1-07-2018 में हो तो अरिष्ट भंग हो जाता है और यह शुभ फलदायी होता है।
9- विवाह कारक योग:-
मेष वृष या कर्क और राहु (Rahu) इन स्थानों के अलावा किसी अन्य स्थान में 7-04-2018 को, तो यह एक आकर्षण है। यह योग परम उपचारक है।
10- फाउंडेशन योग:-
जब राहु और लग्नेश दोनों दशम भाव में होते हैं, तब जातक माता के गर्भ से पैरों से जन्म लेता है। इसे पयालू कहते हैं।
11- योग को अपनाएं:-
राहु और मंगल की युति हो तो वह अंगारक योग कहलाता है जिसमें व्यक्ति को हानि उठानी पड़ती है और सबसे पहले यह देखना होता है कि वह किस भाव में है, शुभ है या अशुभ।
12- राहु शनि गठबंधन योग-
यदि शनि राहु (Rahu) की युति विवाह में हो तो स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता व्यक्ति हमेशा बीमार रहता है।
चौथे स्थान पर होने से माता को कष्ट होता है।
पंचम में होने से संतान कष्ट होता है।
सप्तम में पति-पत्नी को कष्ट होता है।
नवम भाव में पिता को कष्ट होता है।
दशम में व्यापार और प्रतिष्ठा की हानि होती है, लेकिन गुरु की दृष्टि हो तो प्रभाव कम हो जाता है।