सबसे पहले तो आप थोड़ा हमें अपने बारे में बताएं आपका बचपन कैसा बीता, आप क्या बनने की इच्छा रखते थे? (The Exciting Journey Of Bollywood Writer ‘Kamal Mishra’ From Kanpur To Mumbai)
कमल:- जरूर, जैसा कि आप जानते हैं मेरा नाम कमल मिश्रा है. वैसे तो मैं कानपुर का रहने वाला हूं लेकिन मेरे पिता लखीमपुर खीरी में रेलवे में काम करते थे जिसके चलते हमारा बचपन लखीमपुर खीरी में ही बीता. में अपने बचपन की बात करू तो मैं बहुमुखी किस्म का व्यक्ति था यानि की सबसे खुल कर बातचीत करने वाला व्यक्ति और जैसा कि एक आम बच्चे का बचपन होता है हंसता खेलता वैसा ही मेरा भी रहा और अगर मैं अपने सपने की बात करूं तो में वैसे तो डॉक्टर बनना चाहता था लेकिन मैंने बचपन में कुछ ऐसा सोचा नहीं था कि मैं आगे जाकर लेखन में कार्य करूंगा या किसी और क्षेत्र में आगे बढूंगा ।
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आपने अपनी लेखन के करियर की शुरुआत किस तरह से करी?
कमल:- जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैंने बचपन में कुछ सोचा नहीं था कि मैं किस क्षेत्र में आगे बढूंगा इसलिए मैंने कई सारे कामों में हाथ मारे मेंने शेयर बाजार का भी काम किया इसी तरह अलग-अलग काम करते-करते में एक मार्केटिंग कंपनी के साथ मुंबई पहुंच गया जहां मेरी मुलाकात सुनील अग्निहोत्री से हुई उस समय उनकी सिरीयल “चंद्रकांता” के अंतिम 10 एपिसोड में असिस्टेन्ट डायरेक्टर का काम किया, उसके बाद उस समय चल रहे सुनीलजी के ही मेगा सीरियल ,”युग “में 40वे एपिसोड से अंत तक पहली बार मैंने ,लेखन का कार्य किया। जिसके बाद मैंने लेखन के क्षेत्र में ही आगे बढ़ने का फैसला कर लिया।
एक लेखक को कोई भी कहानी, उपन्यास या पटकथा लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
कमल:- कोई भी कहानी, उपन्यास या पटकथा लिखते समय एक लेखक को उस पूरी कहानी को पहले अपने दिमाग में ही बनाना और महसूस करना पड़ता है. उस कहानी का एक-एक व्यक्ति किस प्रकार अपना किरदार निभाएगा क्या कहेगा यह पूरा दृश्य एक लेखक को पहले अपने दिमाग में बनाना पड़ता है उसके बाद ही लेखक कुछ भी लिखने के लायक बनता है. क्योंकि लेखक अपनी लेखनी द्वारा ही अपनी लिखी हुई कहानी को लोगों के बीच जिंदा कर सकता है, लोगों के मस्तिष्क में अपनी एक अलग छाप छोड़ सकता है।
एक लेखक को एक सिरीयल लिखने व एक फिल्म लिखने में क्या अंतर नज़र आता है?
कमल:- अगर मैं एक फिल्म लिखने की बात करूं तो फिल्मो में हमारे लिए लिमिटेशन होती है. हम केवल फिल्म की खास-खास घटनाओ को ही दिखा पाते है. उदाहरण के तौर पर एक फिल्म में हमें एक व्यक्ति के जन्म से लेकर उसके मृत्यु तक की पूरी कहानी कम से कम समय में दिखानी पड़ती है जिसमें हम उस व्यक्ति के पूरे जीवन की कई बारीकियों को नहीं दिखा पाते हैं क्योंकि हमें फिल्म दो से ढाई घंटे में पूरी करनी पड़ती है लेकिन अगर मैं एक सीरियल की बात करूं तो एक सीरियल में एक व्यक्ति के जन्म से लेकर उसके मृत्यु तक के एक-एक पल को दिखा सकते हैं और सीरियल को हम अपने अनुसार जितना चाहे उतना लंबा उसमे कहानियां जोड़कर खींच सकते हैं। (Bollywood Writer)
अगर हम आज से कुछ वर्ष पहले के लेखकों को देखें और आज के लेखकों को देखें आपको उन में क्या फर्क नज़र आता है?
कमल:- अगर मैं पहले के मुकाबले आज के लेखकों की बात करूं तो आज के लेखकों मैं मुझे वह कला बहुत ही कम नजर आती है जो पहले के लेखकों में होती थी. आज के समय के अधिकतर लेखक किसी की बनी बनाई कहानी मैं अपना अंश जोड़कर पेश कर देते हैं उसमें अपना कुछ नया नहीं डाल पाते, लेकिन अगर मैं पुराने लेखकों की बात करूं तो वह जब किसी एक विषय पर लिखते थे तो पहले उस पूरी कहानी का दृश्य स्वयं बनाते थे और पूरी कहानी खुद से ही लिखते थे लेकिन आजकल के लेखकों में यह बहुत कम देखने को नजर आता है। जिसका अंतर आपको पहले की फिल्में और आज की फिल्में देखने पर साफ पता लग सकता है।
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जो नए लेखक है यह जो लेखन के क्षेत्र में ही आगे बढ़ना चाहते हैं उनको आप अपनी तरफ से क्या सुझाव देते हैं?
कमल:- नए लेखक को सामाजिक और विषय के लिए लगातार पढ़ना और प्रैक्टिकल समझ बेहद जरूरी होता है. और साथ ही उनको मैं यह सुझाव देना चाहूंगा कि वह सबसे पहले तो लेखन के ऊपर अपना समय लगाएं. वह जिस विषय पर भी लिखना चाहते हैं उस विषय के बारे में पहले पूरा जाने समझे तब लिखें ताकि जिससे उनके लिखने की कला में और वृद्धि हो यह नहीं कि दूसरों की बनी बनाई कहानियों में अपना कुछ नया जोड़कर पेश कर दे इससे आपका ही नुकसान होगा ना ही आप कुछ सीख पाएंगे न ही आपके लिखने की कला को कोई पहचान मिल पाएगी।
आप लोगो को जल्द ही आने वाली Bollywood फिल्म भैंस की आंख में बतौर Creative & Script Supervisor के रूप में काम करते नज़र आएंगे|
Bollywood Writer कमल मिश्रा के साथ विशेष साक्षात्कार हमारे संवाददाता पिंटू राय द्वारा किया गया |
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