सिरसा। (सतीश बंसल) गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर सोमवार को (Guru Purnima) शाह सतनाम जी धाम में विशेष नामचर्चा कार्यक्रम का आयोजन हुआ। जिसमें आस-पास व दूरदराज से काफी संख्या में डेरा सच्चा सौदा से जुड़ी साध-संगत ने शिरकत की। इस अवसर पर बहन हनीप्रीत इन्सां भी उपस्थित रही। नामचर्चा कार्यक्रम में पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अच्छी सेहत, दीर्घायु और जल्द से जल्द डेरा सच्चा सौदा में पधारने की अरदास करते हुए बहन हनीप्रीत इन्सां सहित डेरा सच्चा सौदा के सेवादार बहन-भाईयों तथा नामचर्चा में लाइव जुड़ी देश-विदेश की साध-संगत ने उपवास रखकर गुरू पूर्णिमा पर्व धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया। इसके अलावा इस शुभ अवसर पर साध-संगत की ओर से पौधारोपण, रक्तदान सहित अन्य मानवता भलाई के कार्य कर जरूरतमंद लोगों की सहायता की गई।
नामचर्चा कार्यक्रम में इससे पूर्व समस्त साध-संगत की ओर से धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा का इलाही व पवित्र नारा लगाकर पूज्य गुरु जी को गुरु पूर्णिमा की बधाई दी गई| इस अवसर पर रिकॉर्डिड वचनों में पूज्य गुरु जी ने साध-संगत को गुरु पूर्णिमा की बधाई देते हुए फरमाया कि गुरु शब्द अपने आप में एक बहुत बड़ा शब्द है। गु का मतलब अंधकार होता है और रू का मतलब प्रकाश, जो अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान का दीपक जला दे और बदले में किसी से कुछ ना ले, वहीं सच्चा गुरू होता है। गुरू की जरूरत हमेशा से थी, है और हमेशा रहेगी।
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खास करके रूहानियत, सूफियत, आत्मा-परमात्मा की जहां चर्चा होती है, उसके लिए गुरू तो अति जरूरी है। समाज में हमेशा से गुरु उस्ताद की जरूरत पड़ती आई है। जब बच्चे का जन्म होता है तो उसका पहला गुरू, उस्ताद उसकी माँ होती है। खिलाना, पिलाना, नहाना, पहनाना, यहां तक कि मल मूत्र भी साफ करना। (Guru Purnima) माँ जैसा गुरू दुनियावी तौर पर दूसरा नहीं होता। फिर बारी आती है बच्चा चलना सीखता है। बहन- भाई, बाप गुरू का रूप धारण करना शुरू कर देते हैं। बाप अपने बच्चे को दुनियावी शिक्षा देता है। दुनिया में कैसे रहना है? क्या करना है, क्या नहीं करना चाहिए? अपना अनुभव उसकी झोली में डालते हैं, अगर कोई लेना चाहे तो। क्योंकि ये कलियुग का दौर है, यहां बच्चे की अपनी गृहस्थी हुई नहीं कि माँ-बाप के अनुभव को ठोकर मार देता है, इसलिए अनाथ आश्रम बनते जा रहे हैं और भरते जा रहे हैं।
लेकिन बात गुरू की, तो वो गुरू बाप भी होता है जो शिक्षा देता है, आगे बढ़ाता है। फिर कॉलेज, यूनिवर्सिटी और आगे से आगे गुरू बदलते जाते हैं और इन्सान दुनियावी शिक्षा में ट्रेंड होता जाता है। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि ऐसा कोई स्कूल, कॉलेज नहीं है, जहां सिर्फ किताबें हों? लेकिन कोई बताने यानी पढ़ाने वाला ना हो। जरा सोचिए, दुनियावी शिक्षा के लिए भी टीचर, मास्टर, लेक्चरार अति जरूरी है। लेकिन एक ऐसी शिक्षा, जो रूहानी है, आत्मिक ज्ञान, आत्मा का परमात्मा से मिलन कैसे हो? वो तो बाहर दिखता नहीं। तो आप ये कैसे कह सकते हैं कि उसके लिए गुरू की जरूरत नहीं।
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जब दुनियावी ज्ञान के लिए जरूरत है तो उसके लिए (भगवान को पाने के लिए) भी गुरू की जरूरत बहुत ज्यादा है। सर्वोत्तम स्थान रूहानी, सूफी गुरू का होता है। सूफी, रूहानी इसलिए क्योंकि वो समाज में रहकर समाज को बदलता है, प्रैक्टिकल लाइफ में ज्यादा यकीन रखता है। पिछले इतिहास में जितने संत, पीर-पैगम्बर उनकी पाक पवित्र बाणी हुई, पवित्र ग्रन्थ हुए, उन सबको पढ़ता है, सुनता है, (Guru Purnima) उनसे ज्ञान हासिल करता है, लेकिन यहीं बस नहीं करता, फिर वो खुद प्रैक्टिकल मैथड ऑफ मेडिटेशन खुद अनुभव करता है। फिर वो गुरू को उसका गुरू जब ये सोचता है, जब ये देखता है कि हाँ, अब ये परिपूर्ण हो गया है, परफैक्ट हो गया, ये आगे दूसरों को भी रास्ता दिखा सकता है तो गुरू फिर समाज में से विकार हटाने के लिए यानि नशा, वेश्यावृत्ति, माँसाहार, बुराइयां, जितनी भी बुराइयां समाज में हैं सबको हटाने के लिए वो गुरू का मन्त्र देता है, जो उसने खुद अभ्यास किया होता है।