सिरसा: (सतीश बंसल) संत कबीर वाणी तमाम तरह की मज़हबी कट्टरता व पाखंड जैसी (Haryana Prales) संकीर्ण मान्यताओं के निषेध का दर्शन है। तर्क पर आधारित यह दर्शन गरिमामयी मानवीय मूल्यों की बहाली का पक्षधर है। मानवीय संवेदनाओं की अनुभूति को गहनता से जानने समझने में संत कबीर वाणी व्यापक एवं यथार्थपरक नज़रिया प्रदान करती है। वर्तमान परिवेश में कबीर वाणी और भी प्रासंगिक है जिसके चिंतन-मनन द्वारा अधिकतर समस्याओं का हल तलाशा जा सकता है इसलिए इसका अध्ययन विश्लेषण अनिवार्य जान पड़ता है।
यह विचार शिक्षाविद एवं प्रगतिवादी चिंतक रमेश शास्त्री ने संत कबीर जयंती के अवसर पर हरियाणा प्रगतिशील लेखक संघ व पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के संयुक्त तत्वावधान में राजकीय महिला महाविद्यालय, सिरसा में आयोजित व प्रतिबद्ध पंजाबी कवि हरिभजन सिंह रेणू की स्मृति को समर्पित विचार-गोष्ठी में कबीर वाणी एवं समकाल विषय पर अपने वक्तव्य में व्यक्त किए।
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उन्होंने अपने व्याख्यान में हरिभजन सिंह रेणू रचित काव्य का मूल्यांकन भी प्रस्तुत किया और रेणू को संत कबीर दर्शन परंपरा का वाहक बताया। हरियाणा प्रगतिशील लेखक संघ एवं पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के संरक्षक का. स्वर्ण सिंह विर्क, हरियाणा प्रलेस के उपाध्यक्ष एवं पंजाबी लेखक सभा, (Haryana Prales) सिरसा के अध्यक्ष परमानंद शास्त्री, हरियाणा प्रलेस के महासचिव एवं पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के सचिव डा. हरविंदर सिंह सिरसा, प्रलेस सिरसा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरजीत सिरड़ी, राजकीय नैशनल महाविद्यालय, सिरसा के सेवानिवृत इतिहास विभागाध्यक्ष डा. निर्मल सिंह, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, कंवरपुरा के प्राचार्य अरवेल सिंह विर्क व वरिष्ठ साहित्यकार महिन्दर सिंह नागी पर आधरित अध्यक्षमंडल की अध्यक्षता में संपन्न हुई|
इस विचार गोष्ठी का शुभारंभ सुरजीत सिरड़ी द्वारा हरिभजन सिंह रेणू की कविता 'तूं कबीर ना बणीं' की प्रस्तुति से हुआ। संत कबीर वाणी के संदर्भ में परिचर्चा का आरंभ करते हुए डा. हरविंदर सिंह 'सिरसा' ने कहा कि वर्तमान में सांप्रदायिक सौहार्द को बरकरार रखने के लिए कबीर वाणी ही हमारा मार्गदर्शन कर सकती है। उन्होंने खलील जिब्रान की कविता को उद्धृत करते हुए कहा कि हमें अपने देश की विविधतापूर्ण संस्कृति का सम्मान करना चाहिए। परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए डा. निर्मल सिंह ने कहा कि संत कबीर वाणी अपने अहम को दूर करते हुए हर प्रकार की विसंगतियों के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करने का आह्वान है।
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इस अवसर पर महिंदर सिंह नागी ने भी संत कबीर वाणी के विभिन्न पक्षों को उजागर करते हुए हरिभजन सिंह रेणू के साथ अपने संस्मरणों से भी अवगत करवाया। परमानंद शास्त्री ने भी संत कबीरदास की वाणी के सामाजिक सन्दर्भों पर विस्तृत चर्चा की। अपने अध्यक्षीय संबोधन में का. स्वर्ण सिंह विर्क ने कहा कि संत कबीर जी का समय उत्पादन के ढंगों में क्रन्तिकारी तबदीली का समय है और उस दौर में संत कबीर जी वर्ण व्यवस्था, सामंतवाद व तत्कालीन सत्ता पर कारगर प्रहार करते नज़र आते हैं। (Haryana Prales) इस सत्र का संचालन डा. हरविंदर सिंह 'सिरसा' ने किया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में आयोजित काव्य-गोष्ठी का संचालन प्रलेस सिरसा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरजीत सिरड़ी ने किया।
इस काव्य-गोष्ठी में मुख्तयार सिंह चट्ठा, छिंदर सिंह देओल, का. जगरूप सिंह चौबुर्जा, हीरा सिंह, अनीश कुमार, अमरजीत सिंह संधु, हरजीत सिंह देसु मलकाना, कुमारी आस्था मसौन, कुमारी ईशनजोत कौर, सुरजीत सिंह रेणू, प्रदीप सचदेवा, सुशील पुरी, रजनेश कुमार, डा. हरविंदर कौर, सुरजीत सिरड़ी, डा. हरविंदर सिंह 'सिरसा' महिंदर सिंह नागी इत्यादि ने समसामयिक मुद्दों व सामाजिक सरोकारों से लबरेज़ रचनाओं की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के समापन पर पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के अध्यक्ष परमानन्द शास्त्री ने सभी वक्ताओं, कवियों और सभी उपस्थितजन के प्रति आभार व्यक्त किया।