चंडीगढ़ 31 जनवरी,2025 : “हिमाचल की धरा वीरों की धरा है | यहाँ से न हजारों योद्धांओं ने अपने देश की रक्षा के लिए प्राणों तक की आहुति दे दी पर माँ भारती का बाल भी बांका नहीं होने दिया | ऐसे ही हिमाचल के वीर सपूत हैं मेजर सोमनाथ शर्मा , जिन्होंने 1947-1948 में हुए पहले भारत-पाक युद्ध के दौरान अदम्य भावना और वीरतापूर्ण कार्यों ने भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परम वीर चक्र के पहले प्राप्त कर्ता होने का गौरव दिलाया। उनकी इस वीरता ने हम सभी हिमाचलियों का सर गर्व से ऊंचा किया | आज उनकी जयंती पर मैं और हमारी संस्था के सभी सदस्य उन्हें शत शत नमन करते हैं |” ये बात वर्ल्ड हिमाचल आर्गेनाईजेशन की चेयरमैन आशा जसवाल ने मेजर सोमनाथ शर्मा की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान कही |
उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के एक गांव डाढ़ में आज ही के दिन 31 जनवरी, 1923 को जन्मे सोमनाथ शर्मा ने सैन्य परिवार में जन्म लिया । उनके पिता मेजर जनरल अमर नाथ शर्मा भारतीय सेना में सेवारत थे | अपने पिता से प्रेरणा पाकर मेजर सोमनाथ सेना में भर्ती हुए | द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना में बिताए गए समय ने उनके कौशल को और निखारा, जिससे वे स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियों के लिए तैयार हो गए। वर्ष 1947 -48 में पाकिस्तान के खिलाफ वे युद्ध के मैदान में आगे बढ़ते रहे । दुर्भाग्य से जब वे अपने साथियों को गोला-बारूद की आपूर्ति कर रहे थे तो दुश्मन का एक मोर्टार गोला उनके पास फट गया, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए।
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बावजूद उन्होंने अपनी वीरता का परिचय देते हुए अपने साथियों में जोश भरते हुए बोले “दुश्मन हमसे केवल 50 गज की दूरी पर है। हम संख्या में बहुत कम हैं। हम विनाशकारी गोलाबारी के अधीन हैं। मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा, बल्कि अपने आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक लड़ूंगा।” बडगाम में उनके कार्यों ने न केवल दुश्मन की बढ़त को रोका, बल्कि भारतीय सुदृढीकरण को श्रीनगर को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण समय दिया। उनके इस अदम्य साहस, बलिदान और एक कुशल नेतृत्व के लिए सभी देशवासी, सभी हिमाचलवासी उनको युगों युगों तक याद रखेंगे और उनकी इस वीरगाथा पर गर्व करते रहेंगे
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