दुनिया में हाइड्रोजन ट्रेन (Hydrogen Train) का चलन तेजी से बढ़ रहा है. सबसे पहले जर्मनी में दुनिया की पहली हाइड्रोजन ट्रेन शुरू की गयी जिसके चलते अब इसके पूरी दुनिया में चर्चे ज़ोरो पर है. ऐसे में अब भारत में भी जल्द ही हाइड्रोजन ट्रेन शुरू होने जा रही है. जो एक बार में 1000 किमी चलेगी। खास बात है कि हाइड्रोजन सेल ईंधन तेल, बिजली या कोयले से ज्यादा सस्ता और प्रदूषण मुक्त है इसलिए यह प्रदूषण मुक्त और परिवहन के लिए इको-फ्रेंडली है | जर्मनी के बाद चीन ने भी हाइड्रोजन ट्रेन की शुरुआत कर दी है. सवाल है कि आखिर भारत में यह ट्रेन कब चलेगी. कुछ दिनों पहले केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि अगले 15 अगस्त तक भारत में हाइड्रोजन ट्रेन चलेंगी|
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हाइड्रोजन से चलने वाली ये प्रदूषण मुक्त ट्रेन एक बार में 1000 किमी की दूरी तय करती है. बढ़ते पॉल्यूशन से परेशान भारत के लिए हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें गेम चेंजर बन सकती हैं. आइये जानते हैं इस हाइड्रोजन ट्रेन की खूबियां.
हाइड्रोजन ट्रेन के फायदे: (Hydrogen Train)
जर्मनी में शुरू हुई हाइड्रोजन ट्रेन को फ्रांस की रेल ट्रांसपोर्ट कंपनी Alstom ने बनाया है. इस ट्रेन में फ्यूल सेल लगाए गए हैं, जो हाइड्रोजन को ऑक्सीजन से मिलाकर ऊर्जा पैदा करते हैं और बदले में सिर्फ पानी और भाप का उत्सर्जन होता है. यह इको-फ्रेंडली ट्रेन एक बार में करीब 1000 किलोमीटर तक का सफर तय कर सकती है और इसकी अधिकतम रफ्तार 140 किमी/घंटा है. इड्रोजन ईंधन से चलने वाले सभी रेल वाहन हाइड्रेल कहलाते हैं. हाइड्रोजन फ्यूल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल नहीं होगा. जर्मनी में इस ट्रेन की टेस्टिंग 2018 से की जा रही थी.एल्स्टॉम के सीईओ हेनरी पॉपार्ट-लाफार्ज ने का कहना है कि सिर्फ 1 किलो हाइड्रोजन लगभग 4.5 किलो डीजल के समान है. ये ट्रेनें प्रदूषण मुक्त हैं.
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चीन बना दुनिया का दूसरा देश:
चीन ने देश के पहले अर्बन हाइड्रोजन ट्रेन का संचालन शुरू किया है. हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाली यह एशिया की पहली ट्रेन है. जर्मनी के बाद चीन हाइड्रोजन ट्रेन चलाने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया है. चीन में हाइड्रोजन ट्राम के प्रोडक्शन का काम 2010 में शुरू किया गया था. चीन की इस हाइड्रोजन ट्रेन में मॉनिटरिंग सेंसर, 5जी डेटा ट्रांसमिशन इक्वीपमेंट्स हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस ट्रेन के चलने से हर साल कम से कम 10 टन डीजल के कॉर्बन डाईआक्साइड इमिशन की कमी होगी. साथ ही रेलवे के डीजल का भी बचाव होगा|