चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर लोग जलाशयों को बचाने के बदले उस पर अतिक्रमण करते हैं तो उन्हें सुनामी और भूकंप का सामना करना पड़ेगा। मुख्य न्यायाधीश एनएन भंडारी और जस्टिस एन माला की पहली पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए जलाशयों पर अतिक्रमण के आरोपितों की याचिकाएं खारिज कर दीं।
तिरुवल्लुर जिले के रहने वाले याचिकाकर्ताओं ने संबंधित प्राधिकरणों की तरफ से भूमि खाली करने के नोटिस को चुनौती दी थी। साथ ही संबंधित जमीन का पट्टा उनके नाम पर करने की मांग की थी, जिसके लिए उन्होंने इस साल आठ अगस्त को आवेदन किया था। याचिकाकर्ताओं ने जलाशयों की जमीन पर अतिक्रमण से इन्कार किया था। पीठ ने कहा कि अदालत की तरफ से मौका दिए जाने के बाद भी याचिकाकर्ता संबंधित जमीन पर अपने अधिकार को साबित करने में विफल रही हैं। इसलिए अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं लग रही है। इसके साथ ही पीठ ने सभी याचिकाएं खारिज कर दीं।
मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस मामले को समाप्त करने से पहले, यह देखना आवश्यक है कि यदि जल निकायों और टैंकों पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण को नियमित किया जाता है। तो इससे अतिक्रमण को बढ़ावा मिलेगा और अंतिम परिणाम सूखे और इसके विपरीत बाढ़ का सामना करना पड़ेगा। अगर हम प्रकृति का ख्याल रखेंगे तो प्रकृति हमारा ख्याल रखेगी। प्रकृति की देखभाल करने में मनुष्य की विफलता के कारण ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या प्रचलित है।
कोर्ट ने कहा कि जलाशयों, तालाबों, चरागाहों और यहां तक कि जंगलों को बनाए रखना प्रत्येक नागरिक का अनिवार्य कर्तव्य है। अगर हम प्रकृति को प्रभावित करते रहे तो यह मानव को प्रभावित करेगा और यह सुनामी, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ने की आशंका है।