कहते हैं ना ऊंची उड़ान उड़ने के लिए पंखों की नहीं बल्कि हौसलों की उड़ान होनी चाहिए। (Mahavir Vinod Rana) महावीर विनोद राणा जिन्होंने एक नहीं कई-कई बार अपने भारत के लिए गोल्ड मेडल दिए हों। आज फिर से वही जोश, वही जुनून के साथ महावीर विनोद राणा एशियन गेम्स और वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए पूरी तरह से पसीना बहा रहे हैं। कहते हैं ना हमेशा हुनर को सलाम किया जाता है लेकिन ऐसा नहीं है। उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जहां पर हुनर की नहीं बल्कि चमचागिरी और दलाली की कदर की जाती है। जिसके कारण आज तक उत्तर प्रदेश को ओलंपिक मेडल नहीं मिला है।
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जहां पर महावीर विनोद राणा को पूरी सुविधा, पूरी ट्रेनिंग और अच्छा कोच होना चाहिए था। वहां आज कुछ भी सुविधा नही है। आज अकेले ही अपने गांव सपनावत में अभ्यास कर रहे हैं। जहां पर ना तो कोई प्रैक्टिस मैट है और ना ही कोई सुविधा है । प्रैक्टिस मैट लाने के लिए बहुत पैसे खर्च करने पड़ते हैं। जिनके पास अपनी डाइट के लिए भी पैसा ना हो वो खिलाड़ी प्रैक्टिस मैट के लिए पैसा कहां से लाएगा। फिर भी अपने देश को मेडल दिलाने के लिए दिन-रात अभ्यास कर रहे हैं।
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पुराने समय में जिस तरह से महान धनुर्धर एकलव्य ने अपनी मेहनत से वो (Mahavir Vinod Rana) मुकाम हासिल कर लिया था जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था और उसी मेहनत से महान धनुर्धार कहलाए। उसी तरह महावीर विनोद राणा ने भी अपनी मेहनत और लगन से और वह भी बिना किसी गुरु के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का परचम लहराया। आज महावीर राणा को भारत का दूसरा एकलव्य कहा जाता है। हमेशा हुनरवाजों का सम्मान करना चाहिए जो हमारे लिए, हमारे देश के लिए सम्मान का पल लाते हैं और हमारे देश को गौरवान्वित करते हैं।