बेशक गेहूं (Wheat) का सीजन बीत चुका है, मगर गेहूं की घटौती के नाम पर आढ़तियों की परेशानी अब भी बरकरार है। सीजन के दौरान गेहूं की घटौती पूरी करने के बावजूद अधिकारी अब भी आढ़तियों से गेंहू की घटौती पूरी करने को कह रहे हैं जो आढ़तियों के साथ ज्यादती है। इसे माफ किया जाना चाहिए। यह बात आढ़ती एसोसिएशन सिरसा के प्रधान मनोहर मेहता ने आज एक बयान में कही। प्रधान ने कहा कि गेहूं का सीजन समाप्त होने के बाद भी आढ़तियों का सिरदर्द कम नहीं हो रहा है। जब सीजन के दौरान गेहूं के ट्रक कंडे पर तुलने के लिए जाते थे, उस वक्त जो गेहूं की घटौती होती थी, उसे आढ़तियों ने उसी वक्त गेहूं के कट्टे भर-भर कर दिए थे और घटौती पूरी कर दी थी।
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उस समय आढ़तियों ने राहत की सांस लेते हुए सोचा था कि अब उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। अब आढ़तियों से दोबारा घटौती ली जा रही है जो अनुचित व ज्यादती है। उन्होंने कहा कि एजेंसियों के अधिकारी अपनी मर्जी से नियम बनाकर आढ़तियों को परेशान कर रहे हैं। लाखों रुपयों की गेंहू देने के बाद भी आढ़तियों को घटौती के नाम पर परेशान किया जा रहा है। उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। उन्होंने बताया कि जब गेहूं का सीजन आंरभ हुआ था, तब गेहूं में 12 प्रतिशत नमी थी। गेहूं खरीद एजेंसियों ने गेहूं को खरीदने के बाद उसका उठान देरी से किया जिस कारण गर्मी की वजह से गेहूं में नमी की मात्रा घटकर 8 प्रतिशत रह गई। गेहूं में घटौती का यही प्रमुख कारण है।
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इसमें आढ़तियों का कोई कसूर नहीं है। इसलिए उनकी मांग है कि गेहूं (Wheat) में निकाली गई घटौती को खत्म किया जाए। प्रधान मेहता ने कहा कि हर बार गेहूं का सीजन आढ़तियों के गले की फांस बन जाता है। गेहूं पर सरकार द्वारा पूरी भी नहीं दी जाती है जिससे आढ़तियों को करोड़ों का नुकसान होने के साथ-साथ आर्थिक तंगी का सामना भी करना पड़ता है क्योंकि अन्य खर्चे बढ़ गए हैं। इसलिए सरकार को गेहूं पर पूरी दामी देने के साथ ही घटौती को खत्म करना चाहिए।