Atul Malikram- भारत देश में बेटियों को लक्ष्मी माना जाता है और इनकी पूजा की जाती है। फिर भी इस देश में बलात्कार के मामले आम हैं। कभी आपने सोचा है ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए, क्योंकि हमारा समाज बीमार है, समाज की विचारधारा में परिवर्तन की आवश्यकता है। यह बीमारी है। भारत की पुरुष प्रजाति बीमार है। उनकी मनोस्थिति की बनावट को समझना होगा, उसका इलाज करना होगा, सज़ा देने से कुछ असर नहीं होगा। सही भी है, जिस समाज की भाषा में स्त्री विरोधी भावना कूट-कूट कर भरी है उसका उपचार ज़रूरी है।
कभी ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ के नारे के साथ उन्हें समानता का अधिकार देने की बात कही जाती है। आखिर कैसी समानता की बात कर रहे हैं हम? वुमन एम्पावरमेंट के नाम पर सिर्फ चंद नारे ही शेष बचे हैं और कुछ भी नहीं। किसी विपरीत जेंडर के प्रति आकर्षण को हम एक सामाजिक मुद्दा बना देते हैं, जो कि एक स्वाभाविक घटना है। और यही बात इतनी हौआ बन जाती है कि वह दिमाग पे हावी हो जाती है।
ये भी पड़े –Today’s Horoscope 25th August 2023 | आज का राशि फल दिनांक 25 अगस्त 2023
जब हम समानता की बात करते हैं, तो क्या हम उस समय समानता चाहते भी हैं? इसका सीधा-सा जवाब है ‘नहीं’, क्योंकि समाज में परिवर्तन लाने के लिए हम महिला दिवस, बालिका दिवस जैसे ढकोसलों से खुद को तसल्ली दे देते हैं। मैं इस सोच से असहमत हूँ, क्योंकि कोई विशेष दिन समर्पित कर देने से विचार तो नहीं बदलेंगे। समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो इस दिन को त्यौहार की तरह तो मनाते हैं, लेकिन उनकी सोच वही पुरुष प्रधान वाली ही है। (Atul Malikram)
“भारतीय मर्द अब भी औरतों को परम्परागत काम करते देखने के आदी हैं। उन्हें बुद्धिमान औरतों की संगत तो चाहिए होती है, लेकिन पत्नी के रूप में नहीं। एक सशक्त महिला के साथ की कद्र करना अब भी उन्हें नहीं आया है।”
– अमृता प्रीतम जी का यह कथन आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
लड़का और लड़की में फर्क सिर्फ शारीरिक बनावट का ही तो है, बाकि वही चमड़ी, वही खून, तो भेद कहाँ से जन्म लेता है? यह जानना होगा। वास्तव में यह अंतर हम अपने घरों से ही देख रहे होते हैं। जन्म लेते ही भेद शुरू हो जाता है, जैसे लड़की है तो उसे घर के कामों से अवगत कराएँगे, उसके खिलौनों में गुड़िया या किचन सेट होगा और लड़के को बन्दूक और कार दी जाएगी। क्यों? यह वही देश है न, जिसकी बेटी लक्ष्मीबाई बचपन से ही ढाल, कृपाण, कटारी से खेला करती थी, तो आज यह क्या हुआ? सोचने वाली बात है।
ये भी पड़े – क्या आप कलाकार बनाना चाहते है ? क्या आप फिल्म जगत में अपना नाम बनाना चाहते है?
हर दिन बलात्कार हो रहे हैं। हम दुनियाभर की बातें बोलते हैं, वुमन एम्पावरमेंट, फेमिनिज़्म, ये, वो इत्यादि। फिर कैंडल मार्च नि कालते हैं, ऐसे कितने ही मार्च फरवरी, दिसंबर निकल जाते हैं, लेकिन हाथ कुछ नहीं लगता। लड़कियों को सलाह है कि यहाँ के मर्दों पर किसी भी तरह का भरोसा करने से पहले सावधान रहें, सचेत रहें और समय आने पर लक्ष्मी से काली आपको ही बनना है। (Atul Malikram)