मुम्बई, जुलाई 2025: पारंपरिक भारतीय पोशाकें केवल वेशभूषा नहीं होतीं, वे कहानी कहने की सांस्कृतिक और भावनात्मक परंपरा में गहराई से जुड़ी होती हैं। सोनी सब के लोकप्रिय शोज़ में जहां किरदार भारत की समृद्ध विरासत से प्रेरणा लेते हैं, वहां पारंपरिक परिधान केवल दृश्यात्मक तत्व नहीं बल्कि कलाकार और उनके किरदार के बीच सेतु का कार्य करते हैं। चैनल के लोकप्रिय शो तेनाली रामा और वीर हनुमान के कलाकार — आदित्य रेडिज, कृष्ण भारद्वाज, निखिल आर्य, हुनर हाली और आरव चौधरी — बताते हैं कि पारंपरिक पोशाक कैसे उनकी प्रस्तुति और भावनात्मक गहराई को प्रभावित करती है।
तेनाली रामा का में तेनाली रामा की भूमिका निभा रहे कृष्णा भारद्वाज ने कहा, “तेनाली रामा को जीवंत करने के लिए उस युग की सांस्कृतिक बुनावट में डूबना जरूरी है और इसमें पोशाक अहम भूमिका निभाती है। माथे का पवित्र तिलक हो या धोती की परतें, हर तत्व मुझे उस दुनिया में ले जाता है। यह केवल मेरी शक्ल ही नहीं, मेरा हावभाव, बातचीत का तरीका और ऊर्जा तक बदल देता है। यह अभिनय से बढ़कर एक पूर्ण समर्पण होता है। सच कहूं तो पारंपरिक वेशभूषा पहनते ही कृष्णा को पीछे छोड़कर पूरी तरह तेनाली बन जाना आसान हो जाता है।”
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तेनाली रामा में कोतवाल की भूमिका निभा रहे निखिल आर्य ने कहा, “पारंपरिक परिधान किरदार का एक विस्तार जैसा लगता है, मानो खुद एक अभिनय उपकरण हो। इसकी परतें, भव्यता और गरिमा मुझे सहजता से किरदार में ले जाती हैं। एक बार जब मैं पोशाक पहन लेता हूं, तो संवाद भी और अधिक गहराई से महसूस होने लगते हैं। हालांकि मेरा पोशाक सेट पर सबसे भारी है और बिना एसी वाले सेट पर शूटिंग करना चुनौतीपूर्ण होता है, फिर भी यह अनुभव बहुत संतोषजनक होता है। दिलचस्प बात यह है कि असल जीवन में भी कभी-कभी संस्कृतनिष्ठ भाषा में बात करने लग जाता हूं, वो भी अनजाने में!”
तेनाली रामा में कोतवाल की भूमिका निभा रहे निखिल आर्य ने कहा, “पारंपरिक पोशाक किरदार का ही एक विस्तार लगती है, यह अपने आप में एक अभिनय का ज़रिया है। इसकी परतें, लालित्य, इसकी भव्यता, ये सब मुझे भूमिका में सहजता से ढलने में मदद करते हैं। यहां तक कि जब मैं पोशाक में होता हूं तो भाषा भी गहराई से गूंजने लगती है; यह प्रदर्शन को प्रामाणिकता प्रदान करती है और पूरे चित्रण को ज़मीन से जुड़ा और वास्तविक बनाती है। बेशक, सेट पर मेरी पोशाक सबसे भारी होती है, और बिना एयर कंडीशन वाली जगहों पर शूटिंग करने से चुनौतियां और बढ़ जाती हैं; गर्मी बहुत ज्यादा हो सकती है। लेकिन शारीरिक जरूरतों के बावजूद, यह अनुभव अविश्वसनीय रूप से संतोषजनक है। मैंने खुद को असल जिंदगी में भी अनजाने में थोड़ी-बहुत संस्कृत-शैली की भाषा बोलते हुए पाया है!”
वीर हनुमान में महाराज कृष्णदेव राय की भूमिका निभा रहे आदित्य रेडिज ने कहा, “महाराज कृष्णदेव राय का किरदार निभाने के लिए पारंपरिक वेशभूषा पहनना मुझे किरदार में उतरने में बेहद मदद करता है। शुरुआत में आधुनिक कपड़ों से राजसी और भारी पोशाक, गहनों और मुकुट की ओर जाना थोड़ा मुश्किल था। लेकिन धीरे-धीरे इसकी आदत हो गई और अब मुझे लगता है कि यह मेरे अभिनय को नई ऊंचाई देता है। जैसे ही मैं पोशाक पहनता हूं, मुझे एक राजा की ताकत और जिम्मेदारी का एहसास होने लगता है। मेरा शरीर, सोच और बोलने का तरीका बदल जाता है — मानो मैं उसी युग में पहुंच गया हूं। पारंपरिक वेशभूषा सिर्फ दृश्य सौंदर्य ही नहीं, बल्कि सच्चाई और गहराई भी लाती है।”
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वीर हनुमान में कैकेयी की भूमिका निभा रही हुनर हाली बताती हैं, “शुरुआत में लंबे समय तक साड़ी, भारी परिधान और खासकर सिर की भव्य सजावट के साथ शूटिंग करना शारीरिक रूप से थका देने वाला था। लेकिन वह सिर पर पहनने वाला आभूषण सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि कैकेयी के गर्व, पद और आंतरिक द्वंद्व का प्रतीक है। समय के साथ मैंने समझा कि यह प्रदर्शन में कितनी गहराई जोड़ता है। कैकेयी एक ऐसा किरदार है जो अत्यधिक भावनात्मक उतार-चढ़ाव से गुजरती है और पारंपरिक परिधान उसमें एक सुंदर गरिमा और प्रामाणिकता लेकर आते हैं, जो आधुनिक कपड़े नहीं दे सकते।” (सोनी सब )
वीर हनुमान में केसरी की भूमिका निभा रहे आरव चौधरी ने कहा, “पारंपरिक परिधान एक खास गरिमा और गंभीरता लाते हैं। खासकर पौराणिक किरदारों में आप सिर्फ एक पोशाक नहीं, बल्कि इतिहास पहनते हैं। केसरी के लिए उनका राजसी लुक उनकी शक्ति और भक्ति का विस्तार है। जब मैं यह पोशाक पहनता हूं, तो मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैं उनका अभिनय कर रहा हूं — मैं खुद केसरी बन जाता हूं।”देखिए ‘तेनाली रामा’ और ‘वीर हनुमान’, हर सोमवार से शनिवार, सिर्फ सोनी सब पर