बलरामपुर। गर्भवती: जच्चा-बच्चा की जिंदगी से खुलेआम खिलवाड़ करना जिला महिला अस्पताल प्रशासन की नीयत बन चुकी है। मरीजों से धन उगाही के लिए मशहूर चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मियों के संवेदनहीनता की हद तब हो गई, जब खून की कमी व रक्तस्राव से तड़पती गर्भवती को बिना इलाज के अस्पताल से भगा दिया गया। चार माह की गर्भवती से पांच हजार रुपये की मांग की गई। रूपए न देने पर रेफर का पर्चा थमा दिया गया। यही नहीं, रक्त देने के नाम पर अस्पताल में घूमते बिचौलियों ने भी 20 हजार रुपये की मांग की। अस्पताल से निकाली गई गर्भवती प्राइवेट बस स्टैंड के निकट जमीन पर पड़ी तड़पती रही।
पचपेड़वा के नेतहवा गांव निवासी शब्बीर ने बताया कि उसकी पत्नी शाहिबा को चार माह का गर्भ था। दर्द होने पर उसे शुक्रवार सुबह 10 बजे जिला महिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। गांव की आशा उसके साथ थी। शब्बीर का आरोप है कि शाहिबा को बाहर की जांच लिखी गई थी। अल्ट्रासाउंड में पता चला कि बच्चे का बचना मुश्किल है। अस्पताल कर्मियों ने इलाज के नाम पर शब्बीर से एक हजार रुपये वसूल लिया, लेकिन कोई इलाज नहीं किया।
दोपहर 12 बजे हालत बिगड़ने पर चिकित्सक ने दो यूनिट ब्लड लाने को कहा। करीब 10 मिनट बाद दो लोग आए और कहा कि दो यूनिट ब्लड का 20 हजार रुपये लगेगा। रुपये न होने के कारण शब्बीर ने उन दोनों को मना कर दिया। बाद में महिला चिकित्सक डा. नगमा ने उसे रेफर करने की बात कही। सीएमएस डा. विनीता राय का कहना है कि अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट के अनुसार, शाहिबा के पेट में कोई गुच्छेनुमा आकृति दिख रही थी। इस आधार पर उसे बहराइच रेफर किया गया था।
एंबुलेंस के लिए भटकता रहा पति : शब्बीर के मुताबिक, साहिबा को रेफर करने के बाद एंबुलेंस की सुविधा नहीं दी गई। उसके पास बहराइच जाने भर के पैसे भी नहीं थे। उसने पत्नी साहिबा को प्राइवेट बस स्टैंड के पास सड़क पटरी पर लिटा दिया। वह दर्द से कराहते हुए पटरी पर गिर गई। प्राइवेट बस यूनियन अध्यक्ष जब्बार खां ने मीडियाकर्मियों को गर्भवती की पीड़ा व महिला अस्पताल की संवेदनहीनता की जानकारी दी। सीएमओ डा. सुशील कुमार ने महिला अस्पताल की सीएमएस से जानकारी ली। सीएमएस ने बताया कि मरीज से पैसा लेने की जानकारी नहीं है। शब्बीर के बिना बताए चले जाने के कारण एंबुलेंस नहीं दी जा सकी।