सिरसा: 11 अप्रैल: साहित्य का मक़सद कोरा मनोरंजन न होकर जीवन की आलोचना को प्रस्तुत करना है। साहित्य का दायित्व समाज और राजनीति के समक्ष मशाल थामकर चलने के दायित्व का निर्वहन करना होता है। यह विचार अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) (Prales) के राष्ट्रीय अध्यक्षमंडल के सदस्य कॉ. स्वर्ण सिंह विर्क ने प्रलेस के 90वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित ‘विचार-गोष्ठी एवं कविता पाठ’ कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर अपने संबोधन में व्यक्त किए। उन्होंने प्रलेस के प्रथम अध्यक्ष महान कथाकार एवं चिंतक प्रेमचंद को उद्धृत करते हुए कहा कि उच्च चिंतन, स्वाधीनता के भाव, सौंदर्य के सार, सृजन की आत्मा व जीवन की सचाईयों से लैस साहित्य ही जीवन की कसौटी पर ख़रा उतर सकता है। कॉ. विर्क ने कहा कि प्रलेस ने अपने स्थापना दिवस से लेकर आज तक अपनी इसी जिम्मेवारी का निर्वहन करते हुए रूढ़िवादिता और अंधविश्वास को दरकिनार कर वैज्ञानिक चिंतन को प्रोत्साहित किया है। (Prales)
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प्रलेस (Prales) सिरसा और पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रलेस के राष्ट्रीय सचिवमंडल सदस्य एवं प्रलेस (Prales) हरियाणा राज्य इकाई के महासचिव डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा, प्रलेस हरियाणा राज्य इकाई के उपाध्यक्ष एवं पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के अध्यक्ष परमानंद शास्त्री व प्रलेस सिरसा के अध्यक्ष डॉ. गुरप्रीत सिंह सिंधरा पर आधरित अध्यक्षमंडल ने की। डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा ने कार्यक्रम के प्रथम सत्र में आयोजित विचार गोष्ठी का प्रारंभ करते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिनाम लेखक मैक्सिम गोर्की के सद्प्रयासों से अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अस्तित्व में आए प्रगतिशील लेखक संघ का प्रभाव ग्रहण करते हुए भारत में 1936 में मुंशी प्रेम चंद की अध्यक्षता में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) ने अपने गठन से लेकर 90 वर्ष के इस लंबे अंतराल में भारतीय लेखकों का जिस प्रकार मार्गदर्शन किया है वह उल्लेखनीय, उदाहरणीय एवं अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिवेश में ध्वंस की प्रक्रिया का रचनात्मकता से मुक़ाबला करने हेतु लेखक को लेखन के साथ एक एक्टिविस्ट की भूमिका भी निभानी होगी क्योंकि दमितों, वंचितों, पीड़ितों, हाशियाकृत व्यक्तियों और समूहों की वकालत करना लेखक का फ़र्ज़ है। (Prales)
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साहित्य सृजन के उद्देश्य को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि हर साहित्यिक कृति का कोई मक़सद अवश्य होता है और बेमक़सद रचना से बड़ा कोई गुनाह हो ही नहीं सकता। डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा ने प्रलेस के सांगठनिक, ऐतिहासिक एवं वैचारिक पक्षों से विस्तार सहित अवगत करवाते हुए कहा कि भारतीय साहित्यिक आंदोलन में प्रलेस का हस्तक्षेप सदैव अग्रणी एवं गरिमापूर्ण रहा है। परमानंद शास्त्री ने विचार गोष्ठी के दौरान अपने संबोधन में कहा कि कार्पोरेटी पूँजी, बाजार के तिलिस्म, तथाकथित विकास, साम्प्रदायिकता, मज़हबी कट्टरता, आर्थिक विषमता के ख़िलाफ़ रचनात्मक आंदोलन को मज़बूत करते हुए लेखकों को साँझा संस्कृति, धर्मनरपेक्ष मूल्यों और तर्कशीलता के पक्ष में बुलंद आवाज़ से समतापरक समाज की स्थापना हेतु जनमत तैयार करने हेतु निर्णायक भूमिका का निर्वहन करना वर्तमान समय की अनिवार्यता है। डॉ. गुरप्रीत सिंह सिंधरा ने उपस्थित लेखकों का आह्वान किया कि वह अपना सृजन धर्म निभाते हुए लेखक संगठनों को मज़बूती प्रदान करने में भी यथा योग्य सक्रिय एवं अग्रणी भूमिका का निर्धारण करें। (Prales)
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कार्यक्रम के दूसरे सत्र में आयोजित काव्य-गोष्ठी में प्रो. हरभगवान चावला, डॉ. निर्मल सिंह, पूरन सिंह निराला, लखविंदर सिंह बाजवा, गुरतेज सिंह बराड़, मुख्त्यार सिंह चट्ठा, जसवीर सिंह मौजी, रमेश शास्त्री, सुरजीत सिंह सिरडी, सुरेश बरनवाल, अनीश कुमार, रजनेश कुमार, मुस्कान, एकता रानी, परमानंद शास्त्री, डॉ. गुरप्रीत सिंह सिंधरा, डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा इत्यादि ने अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर के ज्वलंत मुद्दों व सामाजिक सरोकारों से सराबोर रचनाओं की ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के समापन अवसर पर प्रलेस सिरसा के सचिव डॉ. शेर चंद ने इस अवसर पर विद्यार्थियों और युवाओं की सक्रिय सहभागिता पर विशेष संतोष व्यक्त करते हुए सभी उपस्थितजन के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में कॉ. स्वर्ण सिंह विर्क, डॉ. गुरप्रीत सिंह सिंधरा, प्रो. हरभगवान चावला, परमानंद शास्त्री, डॉ. निर्मल सिंह, डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा, डॉ. शेर चंद, सुरजीत सिंह सिरड़ी, सुरेश बरनवाल, रमेश शास्त्री, अनीश कुमार, कुलवंत सिंह, नवनीत सिंह रेणू, गुरतेज सिंह बराड़, पूरन सिंह निराला, लखविंदर सिंह बाजवा, मुख्त्यार सिंह चट्ठा, जसवीर सिंह मौजी, विक्रमजीत सिंह, रजनेश कुमार, मुस्कान, एकता रानी, सिमरन, कोमल रानी, भावना, पूनम रानी, देशराज सिंह, निर्मल सिंह इत्यादि विद्यार्थियों, युवाओं एवं प्रबुद्धजन ने विशाल संख्या में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज़ करवाई।(Prales)