लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश पर शासन ने दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे भूमि अधिग्रहण मामले में अनियमितताओं के लिए गाजियाबाद की तत्कालीन जिलाधिकारी निधि केसरवानी को निलंबित करने और उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने के लिए केंद्र और मणिपुर सरकार को पत्र भेज दिए हैं। मूलत: मणिपुर काडर की 2004 बैच की आइएएस अधिकारी निधि वर्तमान में केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान में डिप्टी सेक्रेट्री के पद पर तैनात हैं। मुख्यमंत्री ने निधि केसरवानी से पहले गाजियाबाद के जिलाधिकारी रहे विमल कुमार शर्मा के खिलाफ भी एफआइआर दर्ज कराने का निर्देश दिया है।
यह मामला शासन में लगभग पांच वर्ष दबा रहा और इस बीच विमल कुमार शर्मा रिटायर भी हो गए हैं। मुख्यमंत्री के आदेश की जानकारी बुधवार को उनके कार्यालय की ओर से ट््वीट के माध्यम से दी गई थी। इसके बाद नियुक्ति विभाग हरकत में आया और उसने केंद्र के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के साथ ही मणिपुर के मुख्य सचिव को निधि केसरवानी को निलंबित करने और उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही शुरू करने के लिए पत्र भेज दिए हैं।
मुख्यमंत्री योगी ने जांच रिपोर्ट मिलने के बाद भी फाइल पर कार्यवाही करने में अत्यधिक विलंब के लिए जिम्मेदार नियुक्ति विभाग के संबंधित अनुभाग अधिकारी व समीक्षा अधिकारी को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने और अनुसचिव के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया है।
यह है मामला : 82 किलोमीटर लंबे मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेसवे का 31.77 किमी हिस्सा गाजियाबाद में है। गाजियाबाद में एक्सप्रेसवे के लिए भूमि अधिग्रहण की खातिर राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की धारा-3ए की अधिसूचना आठ अगस्त 2011 को जारी हुई थी
इस धारा के तहत भूमि अधिग्रहण का इरादा जताया गया था। जमीन को अधिग्रहीत किए जाने के लिए धारा-3डी के तहत अधिसूचना 2012 में जारी की गई थी। अधिग्रहीत की जाने वाली भूमि का अवार्ड 2013 में घोषित किया गया था। इस अवार्ड के खिलाफ गाजियाबाद के चार गांवों-कुशलिया, डासना, रसूलपुर सिकरोड़ और नाहल गांवों के किसानों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
वर्ष 2016 और 2017 में जिलाधिकारी गाजियाबाद ने आर्बिट्रेटर की हैसियत से भूमि अर्जन के नए कानून के तहत जमीन के सर्किल रेट के चार गुणा की दर से मुआवजा देने का निर्णय किया। शिकायत होने पर मेरठ मंडल के तत्कालीन आयुक्त डा. प्रभात कुमार ने मामले की जांच कराई। 29 सितंबर 2017 को शासन को सौंपी गई अपनी जांच रिपोर्ट में उन्होंने धारा-3डी की अधिसूचना के बाद जमीन खरीदने, आर्बिट्रेटर द्वारा प्रतिकर की दर बढ़ाने और बढ़ी दर से मुआवजा दिए जाने को गलत ठहराया था।
आर्बिट्रेशन के तहत प्रतिकर की दर बढ़ाये जाने से इन चार गांवों की मुआवजा राशि 111 करोड़ रुपये से बढ़कर 486 करोड़ रुपये हो गई। इस अनियमितता के लिए उन्होंने तत्कालीन डीएम गाजियाबाद विमल कुमार शर्मा और निधि केसरवानी समेत कई अफसरों और कर्मचारियों को दोषी ठहराया था।
निलंबित हुए थे एडीएम व अमीन : इस प्रकरण में गाजियाबाद के पूर्व अपर जिलाधिकारी (भूमि अध्याप्ति) घनश्याम ङ्क्षसह ने धारा-3डी की अधिसूचना के बाद नाहल गांव में अपने बेटे के नाम जमीन खरीदी और बाद में बढ़ी दर से मुआवजा हासिल किया। अमीन संतोष ने अपनी पत्नी व अन्य नातेदारों के नाम जमीन खरीद कर ज्यादा प्रतिकर हासिल किया था। जांच होने पर दोनों निलंबित किए गए थे।
दो डीएम हो चुके हैं निलंबित : भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने दूसरे कार्यकाल में औरैया के जिलाधिकारी सुनील वर्मा और सोनभद्र के जिलाधिकारी टीके शिबू को निलंबित कर चुके हैं।