Aloke Upadhyaya's exciting journey | आलोक उपाध्याय का रोमांचक सफर |
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बॉलीवुड लेखक आलोक उपाध्याय का इलाहाबाद से मुंबई तक का रोमांचक सफर -Rising Star

दबंग 3, आगाज़ , ना घर का ना घाट का, शोभायात्रा , बॉडीगार्ड जैसी बड़ी फिल्में लिख चुके पठकथा लेखक 'आलोक उपाध्याय

नवटाइम्स न्यूज़ by नवटाइम्स न्यूज़
April 30, 2022
in चमकते सितारे, मनोरंजन
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Aloke Upadhyaya's exciting journey

Aloke Upadhyaya's exciting journey

Aloke Upadhyaya’s exciting journey :दबंग 3, आगाज़ , ना घर का ना घाट का, शोभायात्रा , बॉडीगार्ड जैसी बड़ी फिल्में लिख चुके पठकथा लेखक ‘आलोक उपाध्याय जी’ से ‘नव टाइम्स न्यूज़’ की विशेष बातचीत ,जिसके दौरान ‘आलोक उपाध्याय’ ने अपने बचपन , अपने संघर्ष और इंडस्ट्री के बारे में खूब जमकर बाते बताई.

‘आलोक उपाध्याय’ से पूरी बातचीत नीचे पढ़े –

Q.1- सबसे पहले तो आलोक आप हमे यह बताएं कि आप का बचपन कैसे था ?

आलोक : मैं इलहाबाद में पैदा हुआ , हम पाँच भाई बहन थे. मेरे पापा के एक चाचा -चाची थे उनके सात बच्चें हुए पर उन में से कोई बच नहीं पाया जिस के बाद उन्होंने मुझे गोद ले लिया वह सेंट्रल एक्साइज में सुपरिटेंडेंट के पद पर काम करते थे. जब उनका ट्रान्सफर होता कहीं भी तो में उन के साथ जाया करता था उनके साथ खूब घुम -फिरा उस के बाद मैं इलहाबाद वापस आ गया ।
इलहाबाद आने के बाद मैंने क्रिकेट खेलने की शुरुवात की मैंने अपने स्कूल , कॉलेज ओर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लिए खूब जमकर क्रिकेट खेला जिस के बाद 1988 में , मैं क्रिकेट खेलने के लिए मुंबई आ गया था।

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Q.2 – क्रिकेटर ‘आलोक उपाध्याय’ कैसे बन गए पठकथा लेखक ?

आलोक : जब आप छोटे होते है तो आप को अपनी तरफ़ वह हर चीज़ बहुत आकर्षित करती है जहाँ खूब चकाचोंध हो जैसे तालियां , रुतबा आदि ओर उत्तर भारत में तीन -चार चीज़े है जिन पर हर घर में बात ज़रुर की जाती है की अभिताभ बच्चन , शाहरुख खान, सलमान खान या कपिल देव , सुनील गावस्कर अपने घर में क्या करते है. देश मे मोदी जी , राहुल गांधी क्या कर रहे है यह हम सभी के लिए अंतरराष्ट्रीय विषय होते है, तो वैसे ही मैं भी वही तालियां , रूतबे की तालाश में क्रिकेटर बनना चाहते था पर कुदरती लेखक बन गया ।

Q.3- ‘आलोक उपाध्याय’ की लेखनी की शुरुवात कैसे या किस प्रकार से हुई ?

आलोक : मैं मुंबई में गलत ट्रैन में बैठ जाने की वजह से गोरेगांव ईस्ट पहुँच गया था . जिस के बाद एक (चित्रनगरी 343 ) बस में बैठ कर में फिल्मसिटी जा पहुँचा, जहाँ उस समय रूप की रानी ओर चोरों का राजा की शूटिंग चल रही थी तो मैंने सतीश कौशिक से कहा मुझे आप अपना असिस्टेंट रख लो पर उन्होंने इसके लिए मना कर दिया ।
उस के कुछ दिनों बाद हमारे पहले गुरु जी ‘शशिलाल नायक’ एक फ़िल्म बना रहे थे ‘अंगार’ जिस में नाना पाटेकर , कादर खान , मीना गुप्ता , जैकी श्रॉफ थे, तो मैंने नायर जी से कहा कि आप मुझे अपना असिस्टेंट डायरेक्टर बना लो तो उन्होंने उस के लिए हामी भर दी जिस के बाद मैं सेट पर लोगों से मिलने लगा और काम सीखने लगा ।

Q.4-आप को लिखने का शौक बचपन से था या असिस्टेंट डायरेक्टर बनने के बाद आप को लगा कि मुझे लिखना चाहिए ?

आलोक :इलहाबाद में, मैं जहां से आता हूं तो, डॉक्टर जगदीश गुप्ता , महादेवी वर्मा , रामगोपाल वर्मा , सुमित्रानंदन ‘पंत’ यह सभी महारथी वही के आस – पास के इलाके के है जिस वजह से इन सभी को पढ़ने के बाद मेरी हिंदी , मुंबईया हिंदी के मुकबाले काफ़ी अच्छी थी. जिस के चलते हीरो – हीरोइन को कोई डाइलॉग देना हो या कुछ समझना हो तो कहते आलोक को बुलाओ , जो बड़ा प्रोडूसर, डायरेक्टर या एक्टर होता है वह अपने सीन लिखवाते है तो मेरी हिंदी अच्छी होने के चलते मुझे यह काम दे दिया गया। अगर आप देखे तो मैं जोर जबरदसती लेखक  (Aloke Upadhyaya’s exciting journey) बना क्योंकि मैंने बचपन मे हिंदी साहित्य खूब भरपूर पढ़ा था।

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Q.5- आलोक जी, एक बड़ी फ़िल्म ओर छोटी फ़िल्म लिखने के दौरान लेखक पर क्या कुछ दबाव रहता है!

आलोक :- जब आप छोटी फ़िल्म लिखते है कम बजट की, कम रील की नही तब बड़ा ध्यान रखना पड़ता है कि एक्टर स्क्रीन होल्ड कर पाएंगा या नहीं, मज़ा आना चाहिए ये डालु वो डालु क्या चलेगा, कम बजट है तो कंजूसी से लिखना पड़ता है क्योंकि आप उस में फाइव स्टार का सीन नहीं लिख सकते, ज्यादा ऑउटडोर नहीं लिख सकते .एक्टिविटी छोड़ को ज्यादा बातचीत वाला सीन बनाना पड़ता है।

 

Q.6- सलमान खान जैसे बड़े एक्टर के लिए लिखना बाकी एक्टर के मुकबाले किस तरह अलग है ?

आलोक : हमे लिखते समय ध्यान रखना पड़ता है कि सलमान खान के सीन में सलमान खान ही हो , एक नया दृश्य हो जब तक फिल्माया ना गया हो आखिर सीन में मज़ा भी आना चाहिए है क्योंकि बोलने का एक अलग तरीका है। उस के बाद भी सलमान खान की भी बहुत सारी चीजों में राज़ी होना ज़रूरी है की मैं यह सीन कर सकता हूं, यह नहीं ओर हर बड़े एक्टर को अपनी सीमा पता होती है वरना लेखक (Aloke Upadhyaya’s exciting journey) तो ‘खुला मैदान है’ चाहे जो लिख दे पर उस में एक्टर को चुनना होता है .उस के लिए क्या सही ओर क्या गलत ।

Q.7- लेखक को शुरुवाती दौर से उतनी ताब्ज़ों नहीं मिल पाई , जितने का वह अधिकार रखता है ? क्या यह माहौल अब बदल रहा है!

आलोक : जी नहीं, अभी भी वैसे ही है, जैसे पहले था. जब तक आप अपनी ब्रांडिंग नहीं करते या जब तक आप ब्राण्ड नही बन जाते तब तक लोग आप को बहुत अच्छे से नहीं जान पाते है।

Q.8- आलोक जी , जो नए लेखक फिल्मों में लिखना चाहते है उनको आप क्या नसीहत देंगे...

आलोक :- नसीहत तो मैं नहीं दे सकता क्योंकि मैं इतना बड़ा नहीं हूं , लेकिन अपने अनुभव से इतना बोल सकता हूं कि सबसे पहले अपने अंदर काम करने का जुनून होना चाहिए. आप खुद के प्रति ईमानदार होने चाहिया , राइटिंग बहुत आसान काम है बाकी कैमरा , रिकॉडिंग के मुक़ाबले ,राइटिंग ऐसी चीज़ है जिस में ‘हर कोई कोई बोलता है कि हीरो को ऐसा करना चाहिए’. हर आदमी के पास कहानियां होती है हर कोई अंदर से लेखक होता है।

‘आलोक उपाध्याय’ ने विशेष सवांद हमारे पत्रकार ‘मोहिय पांडेय’ के साथ किया ।

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