Sameer – कोई ना समझे पीर पराई, क्यों किसी को वफ़ा के बदले वफ़ा नहीं मिलती ना जाने कितनी ही लोगों ने ये गाना सुन के खुद को तसल्ली दी होगी।
बस एक सनम चाहिए है आशिकी के लिए , नज़र के सामने जिगर के पास कोई रहता है.. तो वो तुम, मैं दुनिया भूला दूँगा तेरी चाहत में ,देखा है पहली बार साजन की आंखों में प्यार ,तेरे नाम हमने किया है जीवन अपना सारा सनम ,एक ऐसी लड़की थी जिसे में प्यार करता था ओर ना जाने कितने ही ऐसे यादगार गीत जो लोगों की ज़िंदगी में हमेशा -हमेशा के लिए उतर गए जीन गीतों को ज़ेहन से कभी नहीं निकला नहीं जा सकता ।
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24 जनवरी 1958 को समीर (Sameer) का जन्म वारणसी उत्तर प्रदेश में हुआ । समीर ने बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से एम. कॉम किया उस के बाद समीर बैंक में नौकरी करने लगें पर उन का मन कभी नौकरी में नहीं लगा. उन्होंने कुछ बड़ा करना था, साहिर लुधियानवी ओर मज़रुह सुल्तानपुरी की राह पर चल के फिल्मो में गाने लिखने थे ।
23 वर्ष की उम्र में बैंक की नोकरी तज के समीर मुंबई पहुँच गए, अपने पिता गीतकार अंजान के पास जब उनके पिता गीतकार अंजान ने उनसे पूछा किस लिये आये तो समीर ने कहा “मैं गीतकार बनने आया हूं” । अंजान बॉलीवुड के माने जाने गीतकार थे वह कभी नहीं चाहते थे की समीर कभी भी गीतकार बने क्योंकि अंजान ने 17 साल तक मुम्बई में जी तोड़ स्ट्रगल क्या था ।
अंजान ने समीर से पूछा कि तुम्हे क्या लगता है यहाँ जनत है ? तो समीर ने कहा हाँ तो अनजान ने कहा कि जनत पाने के मरना पड़ता है तो इस पर समीर ने कहा वह इस जन्नत को पाने के लिए मरने को तैयार है।
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अंजान ने समीर (Sameer) के सामने एक शर्त रखी अगर समीर ने कभी उन से आ कर कहा की मैं इस लाइन में फस गया हूं तो उस दिन वो समीर को वापस बनारस भेज देंगे .उस के बाद एक लंबे अरसे तक समीर ने उन से क्लास ली जिस के बद लेखनी की दुनिया में समीर ने नई क्रन्ति ले आये. उस के बाद समीर ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा . अब तक समीर लगभग 650 फिल्मों के लिए लगभग 4000 गाने लिखे चुके है. एक समय ऐसा था जब समीर ने एक दिन में 10 -10 गाने लिखे . समीर का नाम “गिनीज वर्ल्ड बुक” में दर्ज है सबसे ज़्यादा गाने लिखने के लिए ओर उन्हें यश भारती जैसे बहुत सारे अवार्डों से भी नवाजा जा चूका है ।
‘एक लडक़ी जब वो है थी हो गई ‘ तो समीर को बहुत दुख हुआ उस के बाद उन्होंने लिखा कि ‘मैंने जो गीत तेरे प्यार के खतिर लिखे उन्हें बाजार में ले आया हूं’ ।
1993 में कोई ना समझे पीर पराई समीर लिख तो गाने में रहे थे पर खुद एक पीर से गुज़र रहे थे क्योंकि उनका 1993 में उनके पिता अनजान का देहांत हो गया था ओर उनके चाहते कलाकार गुलशन कुमार का मर्डर हो गया थी जिस के बाद वो मुम्बई छोड़ कुछ समय के लिय बनारस वापस चले गये थे ।
जिस के कई सालों बाद समीर (Sameer) मुम्बई वापस आये और कुछ- कुछ होता है फ़िल्म के लिए गाने लिखे जो की ब्लॉकबस्टर साबित हुए ।
समीर कहते है की ‘ इस दुनिया मे दो तरह के लिखने वाले होते है एक सोच के लिखने वाले दूसरा जी के लिखने वाले और समीर जी के लिखने वाले गीताकार में शुमार है|
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