मृदुला अग्रवाल के सौजन्य से वेबिनार के रूप में मंडल परिचर्चा (Mridula Agarwal) आयोजित उनका कहना है की वैदिक और पौराणिक धरोहर पर अनेकों सवाल हमारे हिंदू समाज में हमारे हिंदू भाइयों द्वारा ही किया जा रहा है बड़े शर्म की बात है कि इसके लिए हमें सफाई देनी पड़ रही है हमारे ग्रंथों पर ही लोगों को जानकारी ना होने के कारण अर्थ का अनर्थ बना डालते हैं यह भी नहीं सोचते कि यह ग्रंथ कब लिखा गया? कब कहा गया ? किस संदर्भ में कहा गया?
संदर्भ पर एक परिचर्चा आयोजित की जिसमें कई जानी मानी विदुषीयो ने भाग लिया। परिचर्चा का शुभारंभ ध्येय मंत्र मृदुला अग्रवाल के द्वारा, ध्येय वाक्य किरण चौड़ेले के द्वारा, सरस्वती वंदना की प्रस्तुति डॉ रश्मि दुबे द्वारा दी गई तथा संगठन गीत आराधना रावत के द्वारा प्रस्तुत हुआ। मुख्य वक्ता-सुश्री अरुंधति कावड़कर जी ने 26 फरवरी को वीरसावरकर जी की पुण्य तिथि पर उनका स्मरण कर गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा कही गई पंक्ति के मर्म को , ताड़न शब्द को संरक्षण,परखने, पालन पोषण करने, उद्धार करने के अर्थ में सटीक तरीके से स्पष्ट किया।
प्रोफेसर सरोज गुप्ता ने कहा कि इस चौपाई में निहित ताड़न शब्द का अर्थ मनोविज्ञान के सूक्ष्म अतिसूक्ष्म भाव पर केन्द्रित है। ताड़ना शब्द निगरानी रखना,आत्मीय स्तर पर समभाव की स्थिति का परिचायक है। सोमवार को राजनीति प्रधान युग में गोस्वामी तुलसीदास जी की दार्शनिक मान्यताओं को ध्वस्त किया जा रहा है। समुद्र के कथन को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करना विवाद की स्थिति निर्मित करना ही इनका लक्ष्य है।
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रामचरित मानस को निमित्त बनाकर संघर्ष को उकसाने वाले व्यक्तियों के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि कहहि सुनहिं अस अधम नर, ग्रसे जे मोह पिशाच। पाखण्डी हरि पद विमुख,जानहिं झूठ न सांच। इन विवादप्रिय दयनीय व्यक्तियों के मानस ज्ञान को देखकर दुख होता है (Mridula Agarwal) जो रामचरित मानस की लोकप्रियता को भूल बैठे हैं । जिन्हें मानस की चौपाई दोहों में निहित जीवन निर्माण के सूत्र दिखाई नहीं देते। नारी को मुद्दा बनाने पर भारतीय शिक्षण मंडल की समस्त मातृशक्तियां गोस्वामी तुलसीदास जी का समर्थन करती हैं।
रश्मि मिश्रा ने कहा कि रामचरित मानस की चौपाइयां अति सम्वेदनशील हैं।इन चौपाइयों पर टिप्पणी करने के पहले समय, सन्दर्भ को समझना आवश्यक है। डॉ शोभा सराफ के अनुसार ढोल गवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी , चौपाई उस समय कही गई है जब समुद्र के द्वारा राम की विनय स्वीकार न करने पर राम ने समुद्र को सुखाने के लिए अपनी तरकश से बाण निकाला , तब समुद्र ने श्रीराम से कहा प्रभु आपने मुझ अज्ञानी को शिक्षा दी। अपनी अज्ञानता के वशीभूत ढोल, गवार, शुद्र, पशु, नारी सभी को ताड़ने की जरूरत है।
सुनीता गुप्ता ने कहा कि जिस प्रकार भगवान को तारणहार कहा जाता है अर्थात माया मोह व बंधन से पार लगाने वाला उद्धार करने वाला उसी प्रकार सिद्ध होता है लाइन का अर्थ है उद्धार करना है न कि दंड या पिटाई करना। किरण चौड़ेले के अनुसार इस चौपाई का लोग गलत अर्थ निकालते हैं क्योंकि ढोल गवार शुद्र पशु नारी को तुलसीदास जी ने मारने के लिए नहीं कहा बल्कि सभी को प्रेम से रास्ते पर लाने के लिए कहा है । पूजा मल्होत्रा के अनुसार रामचरितमानस की इस चौपाई का हर कोई अपने हिसाब से अलग-अलग अर्थ निकालता है ।
गलत अर्थ के आधार पर कई बार हिन्दू धर्म और इसके धर्म ग्रंथों पर नारी, पशु और वंचित समाज के अपमान का आरोप लगाकर भ्रम फैलाते हैं. जबकि हकीकत यह है कि किसी भी तरह का भ्रामक दावा समाज में अशांति, आपस में वैमनस्य, सांप्रदायिक नफरत, किसी व्यक्ति का चरित्रहनन कर सकता है। (Mridula Agarwal) सुनैना अग्रवाल के अनुसार बेसुरा वाद्य ,लापरवाह व्यक्ति, समाज के छोटे लोग, बेजुबान जानवर और कोमल कमनीय नारी यह सभी सक्षम प्रेम छाया के अधिकारी हैं। डॉक्टर प्रतिभा भार्गव के अनुसार-ताड़न शब्द का प्रयोग अवधी भाषा में हुआ है जिसमें निम्न अर्थ ,देखना, शिक्षण, पहचानना,रेकी करना, और अनुशासित रहना है ।मनीषा अग्रवाल के अनुसार –स्त्री को 14 रत्नों में माना गया है सुरक्षा की दृष्टि से उसकी सुरक्षा करना पहला कर्तव्य है ।
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डॉक्टर रश्मि दुबे के अनुसार- रामचरितमानस की उपरोक्त चौपाई में तुलसीदास जी ने ताड़न शब्द का अति सूक्ष्म वर्णन किया है । इन सब में ताड़न शब्द का अलग-अलग प्रयोग किया गया है जिसका अलग-अलग अर्थ है! आराधना रावत के अनुसार– यह पंक्तियां यह सिखाती है कि अपने ऊपर आश्रित व्यक्तियों जैसे पशु, सेवक, स्त्री की अपने ऊपर अत्याधिक जवाबदेही रहती है इन सब पक्तियों को संदेह की दृष्टि से देखना कहीं से भी उचित नहीं है ! मधु जैन के अनुसार-चौपाई का कुछ अति विद्वान जनों ने अधूरा अर्थ निकालकर रामचरितमानस जैसी कालजयी ग्रंथ और उसके रचनाकार पर ही आक्षेप लगा दिया जबकि इसके पूर्व की पंक्ति पर ध्यान ही नहीं दिया गया जिसमें कहा गया है ढोल गवार शुद्र पशु नारी शिक्षा और शिक्षण पाने के अधिकारी है|
डॉक्टर प्रतिमा भार्गव के अनुसार ताड़न शब्द का प्रयोग अवधी भाषा में हुआ है जिसमें निम्न अर्थ देखना शिक्षण पहचानना रैकी करना और अनुशासित रहना है! (Mridula Agarwal) आराधना रावत ने मंच का संचालन किया एवं मृदुला अग्रवाल ने सभी का आभार व्यक्त के साथ-साथ यह भी बताया कि इन चर्चाओं से हमारा ज्ञान वर्धन तो हो ही रहा है साथ ही साथ खोज की प्रक्रिया भी जारी है ,जिसमें अभी जयपुर में एक रामचरितमानस की पांडुलिपि मिली है जिसमें कुछ गलतियां हैं और शोध भी लगातार चल रही हैं|
कितने शर्म की बात है कि हमारे इतने पुराने वैदिक पौराणिक ग्रंथों पर हमारे हिंदू ही सवाल खड़ा करते हैं यह एक सोचनीय विषय है इसी का फायदा उठाकर विदेशी आक्रांताओं ने हमारे धर्म ग्रंथों, साहित्यिक धरोहर को संजोकर रखा, उसपर अनुसंधान किया । हमें अज्ञानी कहा, हमारे हिंदुस्तान पर आकर राज्य किया। सोमवार को आजाद भारत में भी विवाद की आग से भारत को तोड़ने की कोशिश की जा रही है। परन्तु लोक मंगलकारी सम्भावनाओं को चरितार्थ करने के लिए हम सब मातृशक्तियां मिलकर भ्रष्टाचार मुक्त भारत, आतंकवाद मुक्त भारत के साथ रामराज्य की परिकल्पना को साकार करेंगे।