पटना (बिहार ), जून 2025: एक धूल भरे गोदाम के किनारे, मक्के की बोरियों से घिरे रामचंद्र सिंह अब जल्दबाज़ी में नहीं हैं। पहले, वह कटाई के तुरंत बाद बाज़ार भागते थे। अब वे मोबाइल ऐप पर दाम देखते हैं, रुझान समझते हैं और सही समय का इंतज़ार करते हैं। वे कहते हैं, “पहले हम घबराकर बेचते थे, अब हम योजना बनाकर बेचते हैं।”
बिहार भर में यह सोच मजबूती पकड़ रही है। किसान अब तकनीक को व्यावहारिक फायदे के लिए अपना रहे हैं। वे खुद तय कर रहे हैं कि कब बेचें, कहाँ रखें, कैसे पूँजी जुटाएँ और बाज़ार से क्या उम्मीद करें। इस बदलाव के पीछे है भारत का सबसे बड़ा अनाज वाणिज्य मंच आर्या.एजी (Arya.ag), जिसने 2013 में पूर्णिया के पाँच गोदामों से बिहार में अपनी यात्रा शुरू की थी। आज कंपनी राज्य में 79 स्थानों पर 379 गोदामों का संचालन करती है, और हर साल 18 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा कृषि उत्पादों को संभालती है।
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2024-25 सीज़न में, आर्या.एजी ने बिहार में 9.42 लाख मीट्रिक टन मक्का संभाला, राज्य में संग्रहीत कुल मक्का का लगभग आधा। बिहार अब आर्या.एजी के लिए एक रणनीतिक बाज़ार है, जो उसकी कुल वेयरहाउसिंग आर्या.एजी का 30% और राष्ट्रीय परिसंपत्ति आधार का 12% देता है। यह सिर्फ पैमाना नहीं, बल्कि सोच में बदलाव है, किसान अब भंडारण कर रहे हैं, विश्लेषण कर रहे हैं और सौदे कर रहे हैं।
मक्का इस बदलाव के केंद्र में है। बिहार भारत का दूसरा सबसे बड़ा मक्का उत्पादक है और रबी सीज़न में अग्रणी है। पहले, इस अनाज का बड़ा हिस्सा असंगठित तरीके से बेचा जाता था, कीमतों की पारदर्शिता नहीं थी और नुकसान होता था। आर्या.एजी का मॉडल इन कमियों को दूर करता है, किसानों, एफपीओ, व्यापारियों और ऋणदाताओं को एक वैज्ञानिक और पारदर्शी भंडारण प्रणाली से जोड़ता है।
समस्तीपुर की ‘एग्रो समस्तीपुर प्रोड्यूसर कंपनी’ ऐसा ही एक उदाहरण है, जो हज़ार से अधिक छोटे किसानों के साथ काम कर रही है। आर्या.एजी से यह एफपीओ सुरक्षित भंडारण करता है और बिना देरी के वित्तीय सहायता पाता है। रामचंद्र जो इस एफपीओ के अध्यक्ष भी हैं, बताते हैं, “गोदाम हमारे लिए बैंक जैसा है। हम अनाज को गिरवी रखकर कर्ज़ लेते हैं और बिक्री के बाद चुकाते हैं। यह हमें राहत देता है।”
बदलाव केवल आर्थिक नहीं है, सामाजिक भी है। अब महिलाएँ भी एफपीओ से जुड़ रही हैं, दाम तय करने की प्रक्रिया में भाग ले रही हैं और गोदाम प्रबंधन की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। गया में, मीना देवी अपने एफपीओ के वेयरहाउस का प्रबंधन करती हैं। वे कहती हैं, “यह काम हमें पहचान और नियंत्रण देता है। पहले हम सिर्फ खेत में काम करते थे। अब हम दाम तय करते हैं, योजना बनाते हैं।”
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बिहार का कृषि-तकनीक बदलाव किसी बाहरी मॉडल पर निर्भर नहीं है। यह किसानों की मौजूदा क्षमता को मजबूत करने वाले उपकरणों पर आधारित है। 2024–25 में, आर्या.एजी ने बिहार में 318 गोदामों के माध्यम से 12.2 लाख मीट्रिक टन उपज का संचालन किया। क्यूआर कोड वाली रसीदें, डिजिटल ऋण वितरण और रीयल-टाइम बाज़ार डेटा, ये अब सैकड़ों गाँवों का हिस्सा हैं।
आर्या.एजी के मुख्य व्यवसाय अधिकारी, रितेश रमन कहते हैं, “सबसे बड़ा बदलाव फैसलों की गुणवत्ता में है। अब किसान बाज़ार के हिसाब से नहीं चलते, बल्कि खुद बाज़ार तय करने लगे हैं।”
संख्या भी यही दिखाती है। 2013 में जहाँ आर्या.एजी 1.8 लाख रुपए थी, आज यह 50 करोड़ रुपए से ज्यादा है। भंडारित उपज 25,000 मीट्रिक टन से बढ़कर 18 लाख मीट्रिक टन से ऊपर पहुँच गई है।
यह बदलाव शोर में नहीं हो रहा। यह उन बातों में दिखता है, जो किसान अब आपस में करते हैं, अनाज को संपत्ति की तरह देखना, दाम पर चर्चाएँ करना, एफपीओ को व्यवसाय की तरह चलाना।
रामचंद्र कहते हैं, “पहले हमें पता नहीं होता था कि अनाज खेतों से जाने के बाद कहाँ गया। अब हमें खरीदार, दाम और भुगतान का समय पता होता है। हम अब सिर्फ किसान नहीं हैं, हम अब श्रृंखला का हिस्सा हैं।”
आर्या.एजी की मौजूदगी दिखाती है कि जब संरचना, पूंजी और जानकारी किसान के इर्द-गिर्द बनाई जाती है, तब बदलाव दूर नहीं होता। बिहार में यह बदलाव हर मौसम के साथ मजबूत हो रहा है, धीरे-धीरे, लेकिन ठोस दिशा में।