सत्संग (Satsang) मानव निर्माण का कारखाना है। आज का मानव संयमहीन, नशेड़ी, दुराचारी होने के कारण दानव बन गया है। दुराचारी होने से मानव पशुस्तर का हो गया है और इसका मुख्य कारण कुसंगति है। उक्त विचार ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर योगाचार्य स्वामी भगवान देव परमहंस के शिष्य स्वामी दिनेशानंद शास्त्री ने श्री मद्भागवत कथा के दूसरे दिन मंगलवार को जनता भवन स्थित राम भवन परिसर में अखिल भारतीय धर्मसभा के तत्वाधान में आयोजित श्री मद् भागवत कथा पर प्रवचन करते हुए कहे। स्वामी जी ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को, ब्रह्मा जी ने नारद जी को और नारद जी ने ऋषि व्यास को सुनाते हुए कहा कि श्रीमद भागवत कथा ऐसी कथा है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के पावन चरित्र का, लीलाओं का विस्तार से वर्णन है जो मनुष्य को भक्ति के मार्ग पर ले जाकर भगवान से मिलवाने का काम करती है।
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स्वामी जी ने देव ऋषि नारद के पुर्नजन्म प्रसंग पर बोलते हुए कहा कि मानव वह है कि जिसमें मानवोचित गुण हो, जीवन मुल्य हो और मानवता हो, लेकिन जिस मानव में सद्गुण नहीं, नैतिक मुल्य नहीं केवल खाना, पीना, भोग भोगना और निद्रा लेने तक सीमित रहना, वह मानव नहीं दरिंदा है। स्वामी जी ने कहा कि जीवन के चार सूत्र है। कथा श्रवण, कीर्तन, तपस्या और परमात्मा का सिमरन करना है। उन्होंने कहा कि यदि मनुष्य परमात्मा का सिमरन करता है तो उसका लोक और परलोक दोनों संवर जाते हैं। स्वामी जी ने फरमाया कि मानव धर्म, सद्विचार, शुद्धाच्चारण धारण करके ही सच्चा नर बनता है। पतित से पतित मानव भी जब धर्मी महापुरूषों और संतों के शरण में आता है तब उनके प्रभाव से मानव का जीवन बदलने लगता है।
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उसमें सद्गुण आने लगते हैं और वह प्रभु की तरफ मुड़ता है। मानव में भक्ति की भावना जागृत होने लगती है, जिसके कारण वह परमार्थ का कार्य करने लगता है और देखते ही देखते वह आलादर्जा का इंसान बन जाता है। यह सब करने से उसके जीवन में सद्गुणों की महक आने लगती है। स्वामी जी ने फरमाया कि सद्ना, पिंगला, जीवंति वैश्या, जगाई, मैधाई, कोडा और अजामील जैसे पतित मनुष्य भी सत्संग (Satsang) के प्रभाव से मानव बन गए। उन्होंने कहा कि नारद पूर्व जन्म में एक दासी पुत्र थे और उनका नाम हरी दास था जो कि एक भटका हुआ सामान्य जन था, उसने चार माह तक संतों का संग किया जिससे उसका जीवन बदल गया। साधना, भजन व तपस्या और सिमरन से पशु स्तर के इंसान नारद देव ऋषि नारद बन गए। स्वामी जी ने कहा कि यदि मनुष्य संतों की शरण में आता है तो अवश्य ही वह दानव से मानव बन सकता है। कथा का श्रवण करने पुरूष व महिलाएं उपस्थित हुई और आरती में भाग लिया। बाद में सभी श्रद्धालुओं में प्रसाद वितरित किया गया।