मनुष्य जन्म लेते ही तीन ऋणों से उक्त हो जाता है, जबतक वह अपने इन तीन ऋणों (will be free from debts) से मुक्त नहीं होता तबतक वह सुखी नहीं होता तबतक वह सुखी भी नहीं (यहाँ आन्तरिक सुख की बात कही गयी है) ।
ये तीन ऋण कौन से हैं ?
(1) देव ऋण (2) पितृ ऋण (3) ऋषी ऋण
(1) देव ऋण- पर्मात्मा ने हमे मानव बनाया, इतना ही नहीं; अच्छा कुल, अच्छा परिवार दिया । प्रकाश के लिए सूर्य, आधार के लिए पृथ्वी, शीतलता के लिये चन्द्रमा, प्यास मिटाने के लिए जल, भूख मिटाने (will be free from debts) के लिए फल और जीवन जीने के लिए वायु । ऐसा बहुत कुछ दिया हमें उस परमात्मा ने, वह भी निश्वार्थ पर हमने क्या दिया ?
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कुछ भी नहीं तो बस कभी हम इसी बहाने से याद कर लिया करें । यदि आप समझते हो वह मन्दिर में नहीं तो वह आपके अन्दर तो है जो आपको राह दिखाता है आप उसी को आँख बन्द कर धन्यवाद तो कर ही सकते हैं ।
(2) पितृ ऋण- हम जिस कुलमें जन्मलें उस पर हमारा धर्म कहता है की हम अपने माता-पिता की सेवा करें । उन्हें किसी प्रकार का दु:ख न हो, बस इस ऋण से भी आप मुक्त हो गये । जिस प्रकार पिता अपनी संतान के सभी संस्कार पूर्ण कराता है उसी प्रकार पुत्र अपने माता-पिता का अन्तिम संस्कार करके ऋण मुक्त होता है ।
(3) ऋषी ऋण- हमारे कल्याण के लिए जीवों के कल्याण की कामना से हमारे ऋषी तप करते हैं । तप के द्वारा परमात्मा को जाना और हमें उनकी राह बतायी । उअन्के इस उपकार के लिये नित्य पंचयाज्ञ करना चाहिये ।
अध्यापनं ब्रह्म यज्ञः पित्र यज्ञस्तु तर्पणं ।
होमो दैवो बलिर्भौतो न्रयज्ञो अतिथि पूजनं ॥
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प्रकार:
मानव जीवन के लिए जो पंच महायज्ञ महत्त्वपूर्ण माने गये हैं, वे निम्नलिखित हैं-
(1) ब्रह्मयज्ञ (स्वाध्याय)
(2) देवयज्ञ (होम)
(3) पितृयज्ञ (पिंडक्रिया)
(4) भूतयज्ञ (बलि वैश्वेदेव)
(5) अतिथियज्ञ
यह हमें नित्य ही करना चाहिए ।