हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, सिरसा द्वारा स्थानीय श्री युवक साहित्य सदन के अतिथि कक्ष में साहित्यिक गोष्ठी (Seminar) का आयोजन हुआ, जिसके अध्यक्ष मंडल में साहित्यकार लाज पुष्प, कश्मीर मौजी तथा इंद्रजीत सेतिया शामिल हुए। सर्वप्रथम हरियाणा उर्दू अकादमी के निदेशक डा. चन्द्र त्रिखा के सुपुत्र डा. विपुल त्रिखा के आकस्मिक निधन पर एक मिनट का मौन रखकर शोक प्रकट किया गया। तदुपरांत साहित्यकार डा. दिलबाग सिंह विर्क ने अपनी साहित्यिक यात्रा का वर्णन करते हुए अपनी पीएचडी की उपाधि हेतु किए गए कार्यों की विशेष चर्चा की।
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इस गोष्ठी का मंच-संचालन हरीश सेठी झिलमिल ने किया तथा डा. शील कौशिक ने सबके प्रति आभार प्रकट किया। साहित्यिक गोष्ठी में डा. राजकुमार निजात ने फिर से आऊंगा वही ख्वाब ले के आऊंगा, गजल प्रस्तुत की। लाज पुष्प की गजल की रवानगी देखिए-एक खिडक़ी सी खुली रहती है, आधी कभी पूरी, चांद आता है, सरेबाम थोड़ा कभी जादा। प्रो. हरभगवान चावला की निम्न दो पंक्तियां द्रष्टव्य हैं, जिन पाठों को निषिद्ध करार दिया गया था।
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दरअसल वही अपरिहार्य पाठ थे, भविष्य के लिए। डा. शील कौशिक ने किताबों के महत्व पर अपने विचार इन पंक्तियों के माध्यम से दिए, घर में कई-कई घर नहीं, कई किताबें रखो, टूटने नहीं देंगी ये घर को। हरीश सेठी झिलमिल की बाल कविता की दो पंक्तियां देखिए- सब कहते चंदा को मामा और धरा को माता, हुआ बहन-भाई का ऐसे चांद-धरा का नाता। इनके अतिरिक्त प्रो. रूप देवगुण, डा. मेजर शक्तिराज, प्रो. सुदेश कम्बोज, कश्मीर मौजी, सुरेश बरनवाल, चमन भारतीय, राकेश कुमार जैनबंधु, इंद्रजीत सेतिया, प्रेमकुमार शर्मा तथा डा. दिलबाग सिंह विर्क ने अपनी-अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। (Seminar)