सिरसा: 24 मार्च: ‘साम्प्रदायिक सद्भाव से परिपूर्ण संवेदनशील समाज का निर्माण लेखन का परम् दायित्व है।’ यह विचार प्रतिबद्ध प्रगतिवादी चिंतक का.स्वर्ण सिंह विर्क ने प्रगतिशील लेखक संघ, सिरसा द्वारा शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव एवं युगकवि पाश व हंसराज की शहादत को समर्पित ‘पुस्तक लोकापर्ण एवं समीक्षा’ (Samiksha) कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर अपने संबोधन में व्यक्त किए। हरभगवान चावला के उपन्यास ‘देख फ़रीदा जो थीआ’ की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए का.विर्क ने कहा कि यह उपन्यास विभाजन की त्रासदी का दस्तावेज़ है। इस उपन्यास के माध्यम से न सिर्फ तत्कालीन संकटों को समझने की दृष्टि मिलती है बल्कि वर्तमान समय में उपस्थित चुनौतियों से मुक्ति का रास्ता भी दिखाई देता है। विभाजन-विस्थापन से प्रताड़ित हर समाज के दुख समान हैं। ‘देख फ़रीदा जो थीआ’ उपन्यास में मुल्तान क्षेत्र से विस्थापित बड़े वर्ग के जीवन संघर्ष द्वारा मानव की जिजीविषा को स्थापित किया गया है और कामना की गई है कि संसार के किसी भी क्षेत्र में मनुष्यों को सत्ता प्रायोजित विभाजन के दंश न झेलने पड़ें इस उपन्यास पर आयोजित विमर्श में डॉ. मेघा शर्मा, एडवोकेट सुरेश मेहता तथा केयूके स्कॉलर नरेश कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। (Samiksha)
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कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के राष्ट्रीय अध्यक्षमंडल के सदस्य का.स्वर्ण सिंह विर्क, राष्ट्रीय सचिवमंडल के सदस्य एवं हरियाणा प्रलेस के महासचिव डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा, प्रलेस हरियाणा के उपाध्यक्ष परमानंद शास्त्री, प्रलेस सिरसा के अध्यक्ष डॉ. गुरप्रीत सिंह सिंधरा व जीएनसी सिरसा से सेवानिवृत्त इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. निर्मल सिंह पर आधारित अध्यक्षमंडल ने की। कार्यक्रम के आरंभ में परमानंद शास्त्री ने अतिथियों व उपस्थितजन का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन प्रलेस सिरसा के सचिव डॉ. शेर चंद ने किया। कुलदीप सिरसा, महक भारती ने क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किए। सुरेश बरनवाल के कहानी संग्रह ‘अँधेरे समय के दस्तावेज़’ के लोकापर्ण पश्चात समीक्षा प्रस्तुत करते हुए मक़बूल शायर लाज पुष्प ने कहा कि सुरेश बरनवाल की कहानियाँ गम्भीर विमर्श पैदा करती हैं। सुरेश बरनवाल की कहानियों को पढ़ने के बाद पाठक ठीक वैसा नहीं रहता जैसा वह कहानी पढ़ने से पहले होता है। यह कहानियाँ पाठक को नई विवेकदृष्टि प्रदान करती हैं व इन कहानियों का कथ्य एवं शिल्प बाकमाल है। कहानी संग्रह पर विमर्श को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ कवि-कथाकार हरभगवान चावला ने कहा कि ‘अँधेरे समय के दस्तावेज़’ की तमाम कहानियाँ वैश्विक कहानी के समकक्ष हैं। इन कहानियों की विशेषता यह है कि ये घटना/ परिघटना के बाद की परिस्थिति से कथ्य ग्रहण करती हैं। सुरेश बरनवाल की कहानियों को पढ़ते हुए पाठक के भीतर पहले करुणा उतरती है, फिर उत्तेजना और तत्पश्चात विश्व मानवतावाद की अदमनीय कामना। (Samiksha)
इस अवसर पर डा. निर्मल सिंह ने भी शहीदी दिवस एवं साहित्य सृजन के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए। अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा ने शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, युगकवि पाश एवं हंस राज का स्मरण करते हुए कहा कि अमानवीय मूल्यों से मुक्ति और समतामूलक समाज का निर्माण शहीद भगत सिंह और युगकवि पाश की रचनाओं का साँझा सूत्र है। वे इस तथ्य से भी भली-भांति परिचित थे कि समाजवादी व्यवस्था की स्थापना के बिना समतामूलक समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता। इन नायकों के सपनों जैसा समाज बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने का संकल्प ही इन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि प्रो. हरभगवान चावला का उपन्यास ‘देख फ़रीदा जो थीआ’ तथा सुरेश बरनवाल का कहानी संग्रह ‘अँधेरे समय के दस्तावेज़’ इन शहीदों के सपनों के समाज का सृजन करने हेतु वैचारिक विमर्श पैदा करने वाली रचनाएँ हैं। कार्यक्रम के अंत में प्रगतिशील लेखक संघ,सिरसा के अध्यक्ष डॉ गुरप्रीत सिंधरा ने सभी अतिथियो, वक्ताओं, लेखकों तथा श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। (Samiksha)
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इस अवसर पर प्रो. अशोक कुमार गंडा, प्रो. जसबीर सिंह भारत, डॉ. हरविंदर कौर, एडवोकेट बलबीर कौर गांधी, सुरीना सैनी, दिव्या सांवरिया, मुस्कान, सिमरन, तेजेन्द्र लोहिया, प्रवीण बागला, ज्ञान प्रकाश पीयूष, जनकराज शर्मा, राज कुमार निजात, शील कौशिक, मेजर शक्तिराज कौशिक, हरीश सेठी, पवन कुमार गुप्ता, विशाल वत्स, राज वर्मा, अंशुल छत्रपति, एडवोकेट लेखराज ढोट, राजेन्द्र ढाबां, डॉ. प्रेम कंबोज, का. राज कुमार शेखूपुरिया, हमजिन्दर सिद्धू, का. तिलक राज विनायक, का. जगरूप सिंह चौबुर्जा, बूटा सिंह, अमरचंद चावला, ललिता चावला, अनुमेहा, सुरेंद्र-वीना, एडवोकेट कृष्ण सुखीजा, कालू राम तिवारी, मांगे राम भारतीय, अनीश कुमार, सुशील पुरी, सुरजीत सिरड़ी, रमेश शास्त्री, सुरजीत रेणु, नवनीत रेणु, हरमीत सिंह इत्यादि समेत विशाल संख्या में प्रबुद्धजन ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई। (Samiksha)